Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 33
________________ 35. मोत्तु गुणावलेवो तीरइ कह णु विणय-ठ्ठिएहिं पि । मुक्कम्मि जम्मि सोच्चिम वि उणपरं फुरइ हिममम्मि ।। 36. दूमिज्गंता हिपएण किं पि चितेति जइ ण जाणामि । किरियासु पुण पअट्टाति सज्जणा णावरद्ध वि ।। 37. महिमं दोसाण गुणा दोसा वि हु देति गुण-णिहामस्स । दोसाण जे गुणा ते गुणाण जइ ता णमो ताण ॥ 38. संसेविऊण दोसे अप्पा तीरइ गुण-ट्टिनो काउं । णिव्वडिप्र-गुणाण पुणो द सेसु मई ण संठाइ । 39. मह मोहो पर-गुण-लहुअपाएँ जं किर गुणा पयति । अप्पाण-गारवंचिम गुणाण गरुप्रत्तण-णिमित्त ॥ 40. भंते जम्मि गुणुण्णमा वि लहुअत्तणं व पावेंति । कह णाम णिग्गुणच्चिन तं वहंति माहप्पं ॥ 14 वापतिराज की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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