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इस लोक में वे कवि जीतते हैं (सफल होते हैं) जिनकी वाणियों काव्यों) में सकल अभिव्यक्ति विद्यमान (है)। (और इसलिए) यह जमत या तो हर्ष से पूर्ण या तिरस्कार योग्य देखा जाता है ।
2. स्वकीय वाणी के द्वारा ही निज के गौरव को स्थापित करते हुए जो
निश्चय ही प्रशंसा प्राप्त करते हैं, वे महाकवि इस लोक में जीतते हैं (सफल होते हैं।
3. जिनके हृदय काव्य-तत्व के रसिक होते हैं, उन (व्यक्तियों) के लिए
निर्धनता में भी (कई प्रकार के) सुख होते हैं (तथा) वैभव में भी (कई प्रकार के) दुःख होते हैं।
लक्ष्मी की थोड़ी मात्रा भी उपभोग की जाती हुई शोभती है तथा सुखी करती है, किन्तु किंचित् भी प्रपूर्ण देवी सरस्वती (अधूरी विद्या) उपहास करती है।
5.
दुर्जनों द्वारा कही हुई निंदा सज्जनों को लगेगी अथवा नहीं लगेगी (कहा नहीं जा सकता), किन्तु वह (निंदा) सज्जनों की निंदा (से उत्पन्न) दोष के कारण उन (दुर्जनों) के (ही) घटित हो जाती है।
6. पर-गुणों का उल्लेख न करने की परिपाटी के कारण वे अत्यन्त दुष्ट
व्यक्ति गुणों के जानकार वैसे ही हुए (हैं) जैसे गुणी (व्यक्ति) (अपने में) उन गुणों के कारण (ही) (गुणों के आनकार) हुए (हैं)।
लोकानुभूति
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