Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 23
________________ 7. जंणिम्मल. वि खिज्जति हंत विमलेहि सज्जण-गुणेहिं । तं सरिसं ससि-पर-कारणाएँ करि-दंत-विमरणाए । 8. जाण असमेहि विहिमा जाम्राइ रिंगदा समा सलाहा वि । रिंगदा वि तेहिं विहिला ण ताण मण्णे किलामेइ ।। 9. बहुप्रो सामण्ण-मइसणेण ताणं परिग्गहे लोनो । कामं गमा पसिद्धि सामण्ण-कई प्रमोच्चे ।। 10. हरइ पणू वि पर-गुणो गहम्मि वि णिम-गुणे ण संतोसो। सीलस्स विवेमस्स अ सारमिणं एत्तिनं चेन ॥ 11. इअरे वि फुरन्ति गुण गुरुण पढमं कउत्तमासंगा। अग्गे सेलग्ग-गमा इन्दु-मऊहा इव . महीए । 12. रिणवाडताण सिवै सप्रलं चिम सिवपरं तहा ताण । णिव्वडइ कि पि जह ते वि अप्पणा विम्हसमवेति ।। वाक्पतिराज । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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