Book Title: Vairagya Shataka
Author(s): Purvacharya, Gunvinay
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
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वैराग्य- nd क्रियाणां लेइने, दैवयोग थकी पोताने उत्पत्तिनुं स्थानक एवी मथुरा नगरीए गयो. त्यां ते निरंतर पोताने उचित
भाषांतर शतकम् व्यापार करतो सतो, एक दहाडो कोइक माठा कर्मना जोगथकी अद्भूतरूपे करीने शोभायमान एवी, पोतानी माता सहित ॥ ३९॥ कुबेरसेना वेश्याने देखीने, कामे पीडीत धयो सतो, ते वेश्याने बहु द्रव्य आपीने, पोतानी स्त्री करीने निरंतर तेनी | JE ॥ ३०॥
HE संगाथे विषय संबंधी सुख भोगवतो हवो. त्या अनुक्रमे करीने तेने एक पुत्र थयो. हवे शौर्यपुरने विषे ते कुबेरदत्ता,
माताना मुखथकी मूलथकी पोतानी ते प्रवृत्ति सांभलीने, तत्काल वैराग्य प्रत्ये पागी सती आर्या (माध्वी)नो संजोग valथये सते दीक्षा ग्रहण करीने, घणां महोटां तप करीने, विशुद्ध अध्यवसायना योग थकी थोडा कालमांज, तेणीए
अवधिज्ञान उत्पन्न कयु. लार पछी ते साध्वी, अवधिज्ञानना बले करीने पोताना भाईनुं स्वरूप जोती सती मयुरा 3t JE नगरीने विषे पोतानी माता संगाथे लागेलो एवो, अने पुत्रसहित एवो, तेने देखीने कर्मनी गतिने धिक्कार करती )
पटले धिक्कार पडो कर्मने !!! एम कहेती सती पोताना भाईने अकारजरूप महोटा पापरूप कादव थकी उद्धारवाने a एटले काढवाने, पोते मथुरा प्रत्ये आवीने, कुबेरसेना वेश्यानेज घेर जइने, धर्मलाभरूप आशिष देइने तेनी पासे
पोताने उतरवावें स्थानक माग्यु. ते अवसरे कुवेरसेना पण ते आर्याने नमस्कार करीने एम कहती हवी. हे महासती! Jहुं वेश्या छु, पण हमणां एक भरतारना संजोगथकी निश्चे कुलस्त्री थइ छु. ते कारण माटे तमे सुखे करीने महारा3E at घरनी समीपे पापरहित एवा आश्रगने ग्रहण करीने, अमने रूडा आचारमा प्रवर्तावो. त्यार पछी कुवेरदत्ता साध्वी
पण पोताना परिवारसहित तेणीए आपेला उपाश्रयमां रही. हवे ते वेश्या, निरंतर त्या आवीने, ते बालकने |
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