Book Title: Vairagya Shataka
Author(s): Purvacharya, Gunvinay
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
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वैराग्य
शतकर
॥१२२॥
त्रुटिते गणे यथा धानुष्केण हस्तौ धृष्टव्यौ तथा च अवश्यं तेन तुझे गुंणे जैह धाणुकएणं । हत्या मले। ये अस्त तेणं ॥ ६९ ॥
| भाषांतर
| सहित ___ अर्थ-(जेणं के) जेणे (तडि के०) संसाररूप समुद्रना काठारूप (माणुस्सजम्मे के०) मनुष्य जन्म (लद्वयंनि l | के०) पामे सते (जिणिदधम्मो के०) जिनेंद्रनो धर्म जे ते (न कओ के०) नथी कर्यो (तेणं के) तेणे अर्थात् तेने (य ! ॥१२२॥
के०) पण (जह के.) जेम (घाणुक्कएणं के०) धनुर्धारि पुरुष जे तेणे अर्थात् तेने (गुणे के०) पणछ (तुट्टे के०) तृटे | सते (अवस्स के०) निश्चे (हत्या के०) हाथ (मलेव्वा य के०) घसवा पडेज छे. तेम आ जीवने पण हाथ घसवा पडे | JA छे. एटले पछी घणो पश्चात्ताप करवो पडे छे. ॥ ६८ ॥
भावार्थ-अनंता भवरूप समुद्रमां भटकतां भटकतां मनुष्य जन्मरूप कांठो प्राप्त थए सते पण जेणे अहिंसा-55 | रूप जिनधर्म न आचरण कर्यो, तेने; जेम रणसंग्रामनां युद्धकरवा गएला एक धनुर्धारी पुरुषना धनुष्यनी पणछ तृटी | | गइ, तेथी तेने जेम हाथ घसवा पड्या, तेम तहारे पण हाथ घसवा पडशे. माटे हे जीव ! जो तुं पण छती सामग्री
सते जिनधर्मरूप भातुं नहि ग्रहण करे, तो तहारे पग मरणवस्थाए पश्चात्ताप करवोज पडशे. ते आ प्रकारे के, " अरेरे ! में छती सामग्रीए पण आ शुं कर्यु ! ! ! के, परलोके जतां धर्मरूप भातुं कांइ पण लीधुं नहीं ! माटे हवे
शुं करीश! एवी रीते तहारे हाथ घसवा पडशे. वली जेम आ भवमां थोडो काल रहेवा माटे कोइ पुरुष ज्यारे परदेश जवानो होय, त्यारे ते पुरुष प्रथमयी भाता विगेरेनो एटलोवधो बंदोबस्त करी राखे छे के. अमक जग्याए |J01
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