Book Title: Vairagya Shataka
Author(s): Purvacharya, Gunvinay
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 156
________________ वैराग्य शतकम् ॥१५४॥ के०) क्रीडा करीश ? ( जत्थ के० ) जे शरीररूप वाव्यने विषे (पइसमयं के० ) समय समय प्रत्ये (कालरहÉ घडीहि ho) कालरूप रहेंनी घडीयो वडे (जीवियंमोहं के०) जीवितरूप जलनो प्रवाह (सोसिजर के०) शोष पामे छे. अर्थात् सुकाइ जाय छे. ॥ ९० ॥ भावार्थ - जेम रहेंट वडे वाध्यमांथी जेम जेम पाणी काढीए, तेम तेम ते पाणी ओलुं धतुं जाय छे. तेम हे जीव ! ते पण जेटलं आयुष्य वांधीने जन्म लीधो छे, ने तेमांथी जे जे समय जाय छे, तेलुं आउखुं ओलुं धतुं जाय छे. कछे, माबाप जाणे के, महारो दिकरो महोटो थाय छे, पण ते दिवसे दिवसे आउखं घटवाथी नहानो थतो जाय छे. ए प्रमाणे विचारता तो, आउखानो अंत आवतां वार नहि लागे. केमके, समये घटवापणुं छे माटे जेमके कोने शूली देवा लइ जाय छे, अने ते शुली सो डगलां छेटी छे, त्यारे ते माणस जेम जेम शूली सन्मुख पगलां भरे छे, तेम तेम तेने मृत्यु नजिक नजिक आवतुं जाय छे, अने ते वखत तेने खानपानादिक कांइ पण गमतु नथी. केम, एने मृत्यु नक्की दुकहुं जाण्युं छे माटे तेम हे चेतन ! तहारां पण जेम जेम वर्ष जाय छे, तेम तेम तहारे पण मृत्यु सन्मुख आवे जाय छे. एटले जो कदि तहारुं आयुष्य सो वर्षनुं होय, अने तेमांथी जे जे वर्ष गां, तेलु आप सो वर्षमाथी ओ युं जाणवु, अर्थात् अल्प आयुष्य झपाटाच पुरुं धशे अने मनना मनसुबा मनमा रही जशे अने पालथी घणोज पश्चात्ताप धशे! माटे प्रमाद छोडीने परलोकनुं साधन करवामां सावधान था. ॥९०॥ एज वातने मूल ग्रंथकार पण जणावे छे के, Jain Education Internal 2010_05 For Private & Personal Use Only भाषांतर सहित ॥१५४॥ www.jainelibrary.org

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