Book Title: Vairagya Shataka
Author(s): Purvacharya, Gunvinay
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 127
________________ वैराग्यK पोताने सुख करवानो के स्वभाव ते जेमनो एवो छे. एटले सौ पोतपोताना सुखना अर्थी छे. पण (तिरि तिरय भाषांतर | दुक्ख के०) तिर्यंच तथा नरक ते संबंधी दुःख. तेने (इक्कल्लु के०) तुं एकलोज (सहसि के०) सहन करे छे, पण ते सहित ||६|| ववत तेमानें (तुह के०) तहारे (सरणि के०) सरण करवा योग्य (कोई वि के०) कोइपण (न अस्थि के०) यतुं | ॥१२५॥ Pil नथी. ॥ ७१ ॥ ॥१२॥ ___भावार्थ-आ जगत्मा परलोकने विषे काइ पण सहायता करवाने न समर्थ एवां माता पिता स्त्री पुत्रादिक सौ पोत पोतानां स्वार्थी छे, पण कोई कोइनु नथी. जेमके. उपर लखेलां घरनां माणसोने एवो निश्रय थाय छे के, | हवे आ पथारीमा सवारेलो माणस जीवशे नही, ए, धारीने ते मृतेला माणसने महा भरपूर वेदनामां तरफडनो नजरे जोइने पण कहे छे के, तमे मने कांइ कहो छो? एटले तमे छानी रीते संचय करेल, आपेलं, मूकेलं, दाटेलं, nail कांइ देखाडो छो ? एवी रीते पोतानो स्वार्थ साधवानी वातो करे छे. तथा तेना मरी गया पछो पण केवल पोतानो hd | स्वार्थ संभारी संभारीने रुए छे के, आटलु काम अधुरं मूकीने गयां ! पण तेओ एम नथी विचारतां के, ज्यांची स- ia मजणो थयो त्यांची मोडीने चोके सूतां सूधी पण एणे आपणुं वैतरुं कूट्यां कयु छे. परंतु ते बापडो नरकादिक गतिने A. विषे एकलो गयो छे, त्यां तेने केवां दुःख पडता हशे ? तथा ते बिचारो घणुं द्रव्य मूकीने गयो छे ! पण तेना बीजा दुःखमां भाग न लेतां फक्त तेनुंज द्रव्य तेनी पछवाडे शुभ कृत्यमां वापर, एवो विचार पण नथी थतो. अने वली आवो विचार पण तेमने नथी यतो के, अरेरे ! रात्रि दिवस पोताना शरीरनं स्ख पण न विचारतां कड कपट Jain Education Interier 2010 05 For Private & Personal use only W ww.jainelibrary.org

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