Book Title: Vairagya Shataka
Author(s): Purvacharya, Gunvinay
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 129
________________ वैराग्य भावार्थ-श्री महावीरस्वामी गौतम मन्ये कहे छे के, हे गौतम ! एक समयमात्र पण प्रमाद न करीश: केमके | शतकम् 15/ आ मनुष्यपणानुं जीवQ डाभना अग्रभागमा रहेला जलविंदुनी पेठे, थोडोज काल रहे तेवू छे, एटले जोतां जोतां || तर सहित 15 अल्प वायुवडे पण शीघ्रपणे नाश पामे तेवं छे. अर्थात डाभना अग्रने विषे रहेला जलविंद तो, फक्त वायवडेज || ॥१२७॥ ||1|| नाश पामे छे; परंतु आ मनुष्य तो अनेक प्रकारना कारणोथी मरे छे. जेम के, ताव आववाथी, मुंझारो थवाथी, || ॥१२७॥ कोलेरा (कोगलियु) आववाथी, घर पडवाथी, अग्निवडे बलवाथी शस्त्र प्रमुख वागवाथी, सर्प करडवाथी, इत्यादिक Ki अनेक प्रकारनां कारणो मलवाथी ओचिंतो नाश पामे छे. एम जाणीने हे जीव! धर्मकृत्लने विषे समयमात्रनो प्रमाद न कर ॥ ७२ ॥ आ ७३ तथा ७४ मी ए बे गाथाओ श्री सूयगडांग सूचना प्रथम श्रुतस्कंधना वैतालीय अध्ययननी छे. संझुध्यध्वं किं न बुध्यध्वं संबोधिः खलु प्रेत्य दुर्लभा संबुझेह किं नै बझह । संबोहि खैलु पिच्च दुल्लहा ।। न एव उपनमंति आगत्यंति रात्रायोऽतीताः नो मुलभं पुनरपि जीवितं 'नो हूँ ओवर्णमंति रईओ। नो सुलह पुर्णरवि जीवियं ॥७३॥ अर्थ-श्रीऋषभदेव स्वामीना पुत्र श्रीभरतेश्वर, तेमणे तिरस्कार कर्या एवा, पोताना अठाणु पुनो प्रत्ये श्री | आदीश्वर भगवान उपदेश करे ठे, अथवा श्रीमहावीरस्वामी पर्षदा प्रत्ये कहे छे के, (संबुज्नह के०) अहो भव्यो ! dl JhULU... DUCbDULHDLAURE JainEducation InternatNC010_05 For Private & Personal use only JALAIJu.jainelibrary.org

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