Book Title: Vairagya Shataka
Author(s): Purvacharya, Gunvinay
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 143
________________ वैराग्य शतकम् ॥ १४१ ॥ Jain Education Inters काका: विनावधनादीविगोपनाः न प्राप्नुयात् दुःसमदुःखं याभ्यस्ताः की की विडंबनाओ 1 नं पाए दुमहदुक्खाओ || अर्थ - ( घोरे के०) घोर (भयानक) एवं (संसारकाणणे के०) संसाररूप महावनने विषे (निय के० ) पोतानुं (कम्म के०) ज्ञानावरणीयादिक कर्म ते रूप (पवण के०) वायु, तेणे करोने (चलिओ के ० ) प्रेरणा कर्यो एवो, अर्थात् उडाड्यो एवो (जीवो के०) आ जीव जे ते (दुमहदुक्खाओ के०) दुःखे करीने सहन करवाने अशक्य छे दुःख जेनुं एवो ( का का के०) केइ केह (विडंबणाओ के०) वध बंधनादिक विवंदना तेने ( न पावए के०) नथी पामतो ? अर्थात् सर्वे विटंबनाओने पामे के. भावार्थ- कोई पुरुष पोतानो लीघेलो नियम (व्रत) कोड़ अल्प परिषहथी मेघकुमारनी पेठे भागवाने तैयार यो छे, पण ते विचार्य के, आ वार्त्ता गुरुने निवेदन करीने पछी महारो नियम मुकुं. एम धारीने जेवलामा गुरु पासे आवे छे. तेलकम ज्ञानवंत गुरुए उपदेश आपीने निश्चल कर्यो. ते आ प्रमाणे के, हे भव्य जीव ! अहो हो!! आ घोर भवाटवीने विषे आ जीवे कर्मना वशे करीने शां शां दुःख नथी सहन कर्यो ? अर्थात् सर्वे जातिनां वध बंधनादिक दुःख सहन कर्या छे, अने अनेक प्रकारना अपराधथी राजा प्रमुखे गधेडा उपर बेसाडीने नाक कान कापीने अने कपालमा डाम देइने इत्यादि घणीज विटंबना पमाडीने, आखा शहरमां फेरवीने शूलिये देवा प्रमुख असह्य दुःख दीघां. त्यां ते परवशपणाथी तेवां दुःख अनंतीवार सहन कर्या. वली कर्मे करीने जीवने शुं शुंनधी विततुं ? 2010 05 For Private & Personal Use Only भाषांतर सहित ॥१४९॥ www.jainelibrary.org

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