Book Title: Vairagya Shataka
Author(s): Purvacharya, Gunvinay
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 107
________________ वैराग्य शतकम् ॥ १०५ ॥ Jain Education Im मृत्वा राजराजाश्चक्रवर्तिनः परिपच्यतेऽतएव नरकज्वालाभिः मस्ऊिँण रायेराया । परिपंच निरयजालाए ॥ ५५ ॥ अर्थ - (जं के०) जे कारण माटे (देवो के०) देव जे ते (मरिऊण के०) मरण पामीने (तिरी के० ) तिर्यच (होइ ho) थाय छे ! अर्थात् देवता मरीने निर्यत्रमां तथा पृथ्विी आदीकमां उत्पन्न थाय छे ! अने (रामराया के०) राजाना पण राजा जे चक्रवर्ती, ते (मरिऊण के०) मरण पामीने (निरयजालाए के०) नरकनी जालावडे करीने (परिपञ्चड़ के ० ) अतिशे पचाय छे ! माटे (संसार के०) ते संसारने (धी घी घी के ० ) धिक्कार थाओ ! धिक्कार थाओ !! धिक्कार ओ !!! इहां अतिशे धिक्कार जणाववाने माटे त्रण वखत धिक्कार कह्यो छे. ॥ ५५ ॥ भावार्थ- कोइने एकवार धिकार ! कोइने वे are frकार !! पण आ संसारने तो व्रणवार धिकार ! का तेनुं कारण एछे के, देवता सरखा महा ऋद्धिवंत पण मरीने तिथेच गतिने विषे अथवा पृथ्वी आदिकमां जडपाषाण पणे उत्पन्न थाय छे ! आशु ओछु आर्श्वर्य छे !! तथा छ खंडना भोक्ता, तथा चोस हजार स्त्रीयोना पति, तथा चोरशी लाख हाथी, चोराशी लाख घोडा, चोराशी लाख रथ, अने छनुक्रोड पायदल, वली नव निधान, अने चौदन तथा सोलहजार जक्ष तथा बत्रीश हजार मुकटबंध राजा इत्यादिक, रात्री दिवस जेनी सेवामां रह्या छे, एवा चक्रवर्ती राजा पण मरीने नरकनी ज्वालामा उत्पन्न थाय छे !! त्यां ते चक्रवर्त्तिने परमाधर्ती, महा वेदना उपजावे छे. अहो ! हो !! आ ते शं थोडी आश्चर्यकारक वार्त्ता छे !!! ॥ ५५ ॥ 2010_05 For Private & Personal Use Only भाषांतर सहित ॥१०५॥ www.jainelibrary.org

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