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वैराग्य
शतकम्
॥११०॥
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अन्यान्यरूपवेषः REET पर्यवर्ततें जीवः अन्नुन्नरूवसो । नडुंब परिअंतर जीव || ६०॥ युग्गम् ॥
अर्थ - हे जीव ! तुं केलीएक बखत (राउति के ० ) राजा ए प्रकारे थयो. (य के०) वली (मगुत्ति के०) भी - खारी ए प्रकारे थयो. ( के०) वली (एस के०) एज तुं (सवागुत्ति के० ) चंडाल ए प्रकारे थयो. वली (एस के ० ) (एजतुं (वेविक के०) वेदनो जाण थयो. वली (सामी के०) स्वामी थयो. अने (दासो के०) दास थयो. ( पुज्जो के०) पूज्य भयो. अने (खलोत्ति के०) खल ए प्रकारे भयो. वलो (अघणो के ० ) निर्धन थयो, अने (धणवइत्ति के ) ) धनपति प्रकारे थयो । ५९ ।। (इत्थ के० ) एम एटले पूर्वेकयुं तेमां (कोइ के०) कोइ प्रकारनो (निअमो के०) नियम जेते (नवि के ० ) नथीज. केमके, (सकरन के० ) पोतानां ज्ञानावरणीयादिक जे जे कर्म तेनी (विजिविड के ० ) विनिवेश एटले प्रकृति, स्थिति, अनुभाग अने प्रदेश ते रूप जे रचना, तेना ( सरसि के०) सरखी (का० ) करी छे चेष्टा ते जेणे, एटले देवादिक पर्याय रूपनो अध्यास [आश्रय] रूप व्यापार ते जेणे एवो सतो (नडुब्ब के०) नटनी पेठे (अन्नुन्न के०) अन्य अन्य छे (रूवत्रेसो के०) रूप अने वेश ते जेतो एवो (जीवो के०) जीव जे ते (परिअसर के ० ) पर्यटन करे छे. ॥ ६० ॥
'भावार्थ- हे आत्मन् ! तुं चौदराज लोकरूप चौटामा, राजा प्रजादिकरूपे स्त्री पुरुषोना वेश लइने नटुआनी पेठे अनेक प्रकारे निष्फल नाच्यो, पण तेमांथो तने कोइ प्रकारनो अविनाशी सरपाव मल्यो नही. उलटो च्यार
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भाषांतर सहित
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