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वैराग्यशतकम्
भाषांतर सहित
८॥
فرقة
यो जानाति न मरिष्यामि केवलिवाक्यात् सः निश्चये कांक्षति श्वधर्मः स्यादितिनान्यैःकार्य
जो जाणे नै मरिस्सामि। "सो हूँ के खे सुऐं सियाँ ॥४१॥ ॥८३॥
अर्थः-हे जीव! (जस्स के०) जे पुरुषने (मबुणा के०) मृत्यु संगाथे (सरुवं के०) मित्रता (अछि के०)छे. (व के.) वली (जस्स के०) जे पुरुषने (पलायणं के०) मृत्यूथी नासी जळु ( अस्थि के०) छे. वली (जो के०) जे पुरुष (जाणे At के०) रम जाणे छे के, (मरिस्सामि के०) हुं मरीश (न के) नही. (सो के०) ते पुरुष (हं के०) श्वः आवती काले धर्म
साधन करीश, ए प्रकारे (सिया के०) स्यात् एटले कदाचित् (कंखे के०) आकांक्षा करे. एटले इच्छा करे, ते प्रमाणे | Id छे. परंतु एवी रीते कोई पुरुषने कोई दिवस पण थयुं नथी के, महारे मृत्युनी साथे मित्रता छे; माटे महारे तो कदि | | मरवू नही पडे ! तथा कोई पुरुषने एम थतुं नथी के, हुं बलवान छ माटे मृत्युथी नाशीने बचीश. तथा कोईना मनमा |
एम नथी थतुं के, हुं क्यारे पण नही मरूं, तो पण ते प्राणी धर्म संबंधी कार्यमां शीघ्रता करवाने ठेकाणे आवती काले | HE थशेज तो ! एवीरीते प्रमाद, केम करतो हशे ! ! ॥ ४१ ।।
भावार्थः- इहां अभूत उपमा अलंकारे करीने उपदेश करे छे, एटले आवो वस्तु कोइ दिवस निपजी नथी, ते कदाचित् जो निपजे, तो ते आश्चर्यकारक कहेवाय आ जीवना मनमां थाय छे के, आजतो धर्मसाधन नहो करीए, पण आवती काले करीशु. पण केम जाण्यं के, तुं आवती काल सुधी जीवीश? माटे आवती काले जीव
السنة في
فلان بالفول
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