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वैराग्यशतकम्
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निद्रा आवी गह, परंतु जंबूकुमारने निद्रा न आवी पछी ताळां उघाडवानी विद्याथी भंडार उघाडीने, नवांक्रोड सोना महोरोनी गांठडियो बांधी ने लेइने चालवा मांडया, एटलामां जंबूकुमारने, यद्यपि द्रव्य उपर मूर्छा तो बिलकूल नथी, तोपण एवो विचार आव्यो के, महारे तो प्रभाते दीक्षा लेवी छे, अने आ चोर लोको जो द्रव्य लेइ जशे तो लोक कहेशे के, जुओ भाइओ ! एनुं धन सर्व चोर लेइ गया, तेथी ए माथु मुंडावे छे. एवी रीते धर्मनी निंदा थशे, ते वात सारी नही. एवं चितवीने नवकार गणवा लाग्या, तेथी पांचसें चोरोना पग स्थंभाइ गया. हमारे प्रभ'वाने विचार यो के, आते शुं थयुं ! त्यारे जोवा लाग्यो तो जंबूकुमारने जागता दीठा. त्यारे प्रभवे जाण्युं के, एनी पासे को महा जोरावर विद्या छे, एवं जाणीने जंबूकुमारने कहां के, महारी विद्या तमे ल्यो, अने तमारी विद्या | मने आपो. त्यारे जंबूकुमारे कछु के, महारी पासे कोईपण विद्या नथी. वली बीजी विद्या महारे जोड़ती पण नथी. महारे तो मात्र नवकार मंत्रनो आधार छे. एवो धर्मोपदेश दोघो. त्यारे प्रभवे कनुं के, आ नवी परणेली स्त्रीयोनो त्याग करीने तुं दीक्षा लेजे. तेने जंबूकुमारे कछु के, हे प्रभवा ! संसारमां सुख छेज क्यां? के जेने हुं भोगवं. संसारनं सुख तो मधुविदुआ समान छे, तेनी लालचे जीव संसारमां रझळे छे. जेम कोई एक पुरुष भूलथी उजड अटवीमां जइ एडयो, तेनी पछवाडे एक हाथी दोडयो, त्यारे ते नाशतो भागतो, एक वडनी शाखामां जड़ लटकी रह्यो. हवे
शाखानी नीचे एक कूवो छे, तेमां प्यार सर्प पोतानुं मोढुं फाडीने बेठा छे, तथा एक अजगर पण मोढुं फाडीने बेठो छे, तथा ते वडना थडने हाथी घुणावी रह्यो छे, तथा जे शाखामां ते पुरुष लटके छे, ते शाखाने एक कालो
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भाषांतर सहित
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