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परमत्याचार करते । असुरों के पास के विसोनके प्रधान देव मक' वे भी असुरों से बिगड़े हुए थे। वैसे असुर भी इन के सम्पतर तथा संगततर पाचरण को सहन कर नहीं सकते
इन दोनोंके बीच लम्बे मस्से तक घोर विवाद चलता रहा बादको एक फारसी मध्यमपथी प्राय जरा ष्ट (जिसका ऊँट पीमा था) ने कहा-असुर और मर्दूक-ऐसे दो ईश्वर नही हो सकते । ईश्वर एक है। और वह है 'मसुर मर्दूक' या अहुरमेजदा इस अहुरमेजदा का एकेश्वरवाद फारस से भूमध्यसागर तक दो सौ से अधिक साल व्याप्त रहा । यहूदी इस देश में प्राकर गिरफ्तार हुए थे। कुछ कालके बाद इन यहुदियोको रिहा कर दिया। इनकी जातोय-देवताका नाम था 'जिउहे'। इन यहुदियो को बड़ा घमड था कि वे अपने देव के बड़े प्यारे है। वे अपने को बड़ा देव भगत मानते थे। महरमेजदा के बाद उन्होंने अपने देवका नाम रक्खा 'जिहोबा' जो सारे ससार का एक ईश्वर बना दिया। इसीसे ईसा, महम्मद मादि पुत्र, दूत और अवतार हुए जिससे माज ससार मे धर्मकी मतांधला तथा प्रतिक्रिया परिव्याप्त है।
इस धर्मको प्रतिक्रिया ऐसे अत्याचार के विरुद्ध मात्मज्ञानी लोगो का सिर उठाना स्वाभाविक है। वैसे लोग सोचने लगे कि सभोगकी स्पृहा या तृष्णा को छोडदेने से ही ऐसे राजाम्रो या सम्राटो के अधीन रहने के दुखसे मुक्ति मिलेगी। इन विरुद्ध मतवालो ने जनसमाज को छोड़कर, कृष्णारहित हो, वनमे पेट के फल और झरने के पानीसे गुजारा क्गि और पशपक्षियो के साथ निश्चिन्त जीवन बिताया। उन्हीको देखकर हमारे देशमें एकबात कहीजाती है कि
"स्वच्छन्दबनवातेन साकेनाप प्रपूर्वते । मस्थ बग्योपरस्थाक कुर्यात् पातक महत्।"