________________
मौके कालसे जैनधर्म में मतभेदका बीज पड़ा था, जिससे ईस्वी पहलों शताब्दी में वह दो भागो में विभक्त हुम्रा था । उस समय जैनधर्म के दो प्रसिद्ध प्राचार्य भद्रबाहु और स्थूलभद्र नामक थे । भद्रबाहु दिगम्बर सप्रदाय का आरम्भ हुआ मोर स्थूलभद्र से श्वेताबर सप्रदायका । हरिषेणकृत "कथा कोष" में लिखा हुआ है कि १२ साल तक दुर्भिक्ष पड़ने की बातको जानकर प्राचार्य भद्रबाहु ने अपने शिष्योको दक्षिण चले जाने के लिए कहा था और वे स्वय उज्जयिनी जाकर वहा अनशन व्रतके द्वारा समाधिस्थ हुए थे ।
1
बौद्धो के "पिटक" ग्रन्थ की तरह जैनियो के "सिद्धान्त " ग्रन्थ भी हैं । वह है "प्रङ्ग मोर पूर्व" भद्रबाहुने इन सब सिद्धांत ग्रन्थो का परिशीलन किया था । श्वेताम्बर मानते हैं कि इस समय ई० ० पू० ४सदी में प्रङ्ग प्रत्योका सकलन हुआ था । उस से पहले गुरुमुख से जैनधर्मका प्रचार होता मारहा था । उपरान्त ५५४ ई० में बल्लभीमें श्वेताम्बर जैनियो को एक महासभा आचार्य देवगण क्षमा श्रमण के नेतृत्व में बैठी । उस सभामें जैनधर्म क उन ग्रन्थोका संकलन किया गया जो प्राज़ श्वैतास्वरीय भागम साहित्य है । (३) प्रत. देवगिणिको श्वे ० जैनियोंका बुद्धघोष कहा जासकता है । जैनियो सारी बाते इन अन्यों में लिपिवद्धकी गयी है |
2
जैन के अनेक ग्रन्य लुप्त हो गये हैं, जिनको 'पूर्व" कहते
4
थे । फिर भी जैनियोक अनेक ग्रन्थ हैं ।
दिगम्बर जैनियो का साहित्य मी अति उच्च कोटीका है । लेकिन वह प्राय. म्रप्रकाशित ही है । उनके मतानुसार प्रङ्ग
警
पूर्व ग्रन्थ मुनिवरों की स्मृति क्षीण होने से लुप्त हो गये। उनका
कुछ मश जो श्री धरसेनाचार्यको याद था वह उन्होंने पहली
शतीमे गिरिनगर मे लिपिवद्ध करा दिया था । बहु सिद्धांत
(३) शाहे 'उत्तर भारत मा जैनधर्म' (बम्बई)
----