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रता, प्रयल और दान इतिहास में और हमेशा के लिये स्वी गरों में पति रहेना। उनके पासनमें जैनधर्म कलिगमें उन्नति के शिखर पर पहुंचा था। मगधसे कलिंग जिनका उबार करके उन्होंने जातीय देवताको पुनः संस्थापना की पी।
इसके बाद ही सारवेल के जीवन में परिवर्तन कापण्याय भारंभ हुमा था। धीरे धीरे जैन धर्मका मादशं उनमें अमिभूस हमा था। राजत्वके चौदहवें सालमें महामेषवाहन सम्राट खारवेलको हमेशाके लिये कलिंग इतिहाससे विदा लेकरमनन्त विस्मृति के गर्भ में लीन होना पड़ा। इसके बाद उनके विषयों जानने के लिए कोई साधन नहीं है।
इस प्रकार मात्र सेंतीस सालकी छोटी उम्र कलिमकी राजनीतिमें उथल पुथल मचाकर बारचेल विदा होते है। पागे चलकर हाथीनुफा अभिलेखमें खाखेलके वारेमें पीर कुछ घटनाएँ नही पायीं जाती। इसलिए यह अनुमान किया जाता है कि खारवेलने मुक्ति की खोचमें खंडगिरि या उदयनिरिकी किसी अज्ञात जगह में शरण ली थी।वही सच्चे जैन जीवा की कामना है।