Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lakshminarayan Shah
Publisher: Akhil Vishwa Jain Mission

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Page 139
________________ कलासृष्ठि के द्वारा प्रत्येक धर्मकी जो भावपूर्ण अवतारणा की है वह इस युग के ऐतिहासिको के लिए इतिहास लेखन के सारे उपादान देती है। जैन धर्म, वौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म के रूपायन के बीच ऐसा एक अटूट ऐक्य और पद्धति का एक है, जिस से एक से दूसरे को जुदा कर देने के लिए सीमा रेखा' काटना बिल्कुल प्रासान नहीं है। जिस शिल्पीने जैनमूर्ति या चैत्य बनाया है, उसीने कही बौद्ध धर्म की अनेक प्रतिमायें और विहारो का निर्माण किया है, क्योंकि दोनों धर्मं परस्पर एक साथ प्रचारित प्रौर प्रसारित होने से रचित शिल्प कला में कला की पद्धति प्राय एक ही तरह की देखने को मिलती है। प्रा. ऐतिहासिक संस्कृति पीठों में जैन धर्म के स्मारक देखने को न मिलने पर भी मोहनजोदारो से मिले हुए चिन्ता मग्न नग्न पुरुष - मूर्तियो को जनतीर्थङ्कर कहा जा सकता है । हडप्पा से मिले हुए नग्न पुरुष मूर्ति के साथ अङ्ग गठन से विहार प्रदेश के लाहोनिपुर प्रान्त से मिले हुए नग्न जेन मूर्ति का मैल एसा अधिक है कि हड़प्पा के प्राचीन मूर्ति को जैन कला कहकर ही ग्रहण किया जा सकता है । उस विषय में इतना अनुमान किया जा सकता है कि बहुत प्राचीनकाल से एतिहासिक युग में भारतीय कला धोरे धीरे प्रवेश कर देश काल और सामयिक सामाजिक वेष्टनी के बीच नए नए रूप में प्रकाशित हुई है । इस रूपायन में अलग अलग धर्म और उसका प्रतीक और प्रतिमा का विभिन्न परिधान, प्रायुव और बाहन वगैरह से जो सूचना मिलती है वह एक निरवच्छिन्न ऐक्य का निर्देश देती है। जैन और बौद्ध धर्म के पृष्ट पोषक तत्कालीन धनी भोर राजाम्रो के निर्देश से इस कला का प्रकाश न होने से आज हमें कोई एतिहासिक प्रमाण विभिन्न धर्म के मिल नही सकते हैं । -१२८

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