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' ७. कलिंग में खारवेल के परवर्ती युगमें
जैन धर्म की अवस्था सम्राट् खारवेलके बाद और महाराज महामेघवाहन कुदेपश्री या कदपंधी ने कलिंग सिहासन पारोहण किया था। डिसके बाद चेतिवशकी हालत क्या हुई, यह जानना मुश्किल है। मंचपुरी गुफामे जिनकुमार वडखके नामका उल्लेख किया गया है उनका कदर्पधी के उत्तराधिकारी होकर राज्य शासन करना अनुमानित किया जासकता है । परन्तु यह निश्चित है कि उस समय तक चेतिवशकी पूर्व वैभव और शक्ति नहीं बरावर रह गई थी। डॉ. कृष्णस्वामी पायागार ने दो तामिल अथो, यथा शिलपथीकारम्' एवं 'मणि मेखलायी'मे वणित कई विवरणो से सत्कालीन कलिंगका परिचय कराया है। उन दोनो ग्रन्थो में कलिंग राजवशके दो भाइयो के विवादका वर्णन दिया गया है। इससे मालूम होता है कि कलिग राज्य उस समय दो खण्डोमें विभक्त हुआ था। एक की राजधानी थी कपिलपुर भोर दूसरे की सिंहपुर । इन दोनो राज्योमे जो दो भाई राजत्व करते थे वे अनुमानित चेतिवश सभूत और खास्वेलके वशधर ही होगे। इन दोनो भाइयोके मापसी तुमुल युद्ध होने के कारण कलिंग छारखार हो गया था । और बादको एक वैदेशिक प्राक्रमण के वश में फस गया था। 1 Ancient India and South Indian History and Culture, Vol I pages 401-402,
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