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नाम ही वृषभ का प्रतिपद है।
जगन्नाथ जी के मंदिर के बेड़ा (घेरा) में कोहली बैकुंठ के नाम से एक स्थान है। यह कोहली शब्द तामिल के कोएल से प्रपत्रा संस्कृत के कैवल्पसे पाया है, विचारणीय प्रश्न है कि हिंदुनो से मुक्ति मोक्ष शब्दादि की तरह जैनधर्म का कैवल्य शब्द भी एकार्थ वाचक है। वस्तुत यह कैवल्य शब्द जैनधर्म का ही है जिसे उड़ियाने प्रपना बना लिया है। क्योकि प्राचीन हिंदू अथोभे मोक्ष के अर्थ में कहीं भी कैवल्य शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है।
जिन जिन तिथियों में तीर्थङ्करोंके गर्भावस्थान,जन्मतपस्या, ज्ञानप्राप्ति और मोक्ष प्राप्ति हुई है, इन्द्रादि देवगण उन्ही तिथियो में उत्सव मनाते हैं। जैनधर्मी लोग भी पृथ्वी पर उन्ही तिथियो मे चैत्रयात्रा करते है। चत्य निर्मित रथ के ऊपर जिन देव की प्रतिमा रखकर नगर मे परिक्रमा कराने को विधि की चैतयात्रा करते हैं । सुसज्जित हाथी और गीतबादित्रो के साथ इस उत्सवका परिपालन होता है। प्रभिधान राजेन्द्र अनुमान विवरण में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है।
(बट-मूल में, हाथ जोड कर व्याकुल हृदय से सीता ने प्रार्थना की) मपनी परोपकारी वृति के कारण चतुर्दश लोक में तुम्हारी ख्याति है। मेरी सास पोर मेरे श्वसुर, अयोध्या में मगल से रहें, पत्र घुन को साथ लेकर भरत वीर सुखपूर्वक राज्य पालन करते रहें। अयोध्या निवासी सभी नर नारी प्रानन्द पूर्वक रहें, मैं हाथ जोड़ कर विनती करती ह, शत्रो का उपद्रव उनको न हो। में विधवा और गणिता न होऊ और युग युग तक जीवित रहू ।। मेरे पिता परम पद की प्राप्ति करें, इससे अधिक पीर तुमसे क्या मागू।
विचित्र रामायण। ६ पुरुषार्थ शून्याना गुणना प्रति प्रसव कैवल्य स्वरूप प्रतिष्ठा वाचित शलि हत