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का 'त्रिषष्टि शालाका पुरुष चरित्र' में यह वर्णन किया गया है। भागवत पुराण और अग्नि पुराणादि में वृषभवान की विष्णुका प्रवतार कहा गया है। किन्तु प्रकृत में देखने पर ऋषभदेव का शिवके साथ बहुत सादृश्य दिखाई पड़ता है । 'किन्तु ऋषभनाथ जैनधर्मके प्रचारक न थे, ऐसा सन्देह होने का कोई कारण नही है । इसलिए बैलको उनका चिन्ह तथा गौमुखे यक्षको बैलकी प्राकृतिपर और दक्षिणी चक्रेश्वरीको वैष्णो के समान दिखाने की चेष्टामें शिल्पीने मालूम होता है कल्पना की कि ऋषभनाथ शिव और विष्णु से बडे हैं । ऋषभनाथ की प्रतिमा के सम्पर्क मे जैनियो के शास्त्रो मे विशेष वर्णन कुछ नही है । तो भी प्रवचन सारोद्धारसे मालूम पडता है कि बैल जैनियो का प्रथम प्रतीक था । धर्मचक्र उनका दूसरा प्रतीक है । उन्होने न्यग्रोध या वटवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था । उनकी प्रतिमूर्ति के दोनो पार्श्व मे क्रमशः भरत बाहुबली नामसे दो पूजक होते है ।
इन चौबीस तीर्थ रोका विशेष परिचयनिम्न प्रकार प्रढिमे:
१
तीर्थङ्कर ऋषभदेव व माद्रिनाथ, जन्मस्थान-बिनीताती पिता-नाभिराजा माता मरुदेवी, विमान- सर्वार्थसिद्ध, वर्णसुवर्णाभ, केवलवृक्ष न्यग्रोध, लाञ्छन- वृष यक्ष गोमुख, पक्षीचक्रेश्वरी प्रतिचक्र, चउरिधारक- भरत मोर बाहुबली निर्वाण स्थल- कैलाश (अष्टापद) गर्भ झषाढ़ बढी २ जन्म व तप चैय बदी ६ केवल ज्ञान फाल्गुन वदी ११ निर्वाण माघ वदी १४
२
तीर्थंकर-मजितनाथ जन्मस्थान- अयोध्या, पिता- जितशत्रु माता विजयमाता विमान विजय, वर्ण-स्वर्णीस, केवलक्ष-शान सप्रखड लाछन- गज, यक्ष महायक्ष, यक्षी - अजित वाला (20) रोहिणी (दि०) चउरीधारक सगर-बक्री, निर्वाण स्थान स०शि० गर्भ जेठ वदी १५, जन्म व तप माघ सुदी १०, केवल ज्ञान
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