Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lakshminarayan Shah
Publisher: Akhil Vishwa Jain Mission

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Page 106
________________ वास्तविक जीवित जागृत प्रतिमा-सी मालूम पड़ती है । "नीचे के मजले में मूर्तियां इतनी उच्चकोटि की नहीं है उनमें धप्राकृतिकता मोर अपरिकल्पता पूर्ण मात्रामे मालूम पड़ती है । . किन्तु रानी गुफा में स्थापित मूर्तियों से वे अवश्य प्राचीन हैं, किन्तु स्थान विशेष के कारण हमे वहा खूब उच्च कोटि के स्थापत्य भी देखने को मिलते है इसलिए नीचे की मजले की कला ऊपर मजले की अपेक्षा अधिक पुरानी है। इसमें भूल नही है । रानी गुफा के दूसरे मजले में स्थित मूर्तियो की कलामें हम जो पार्थक्य देखते हैं, वह पार्थक्य समय की दूरताके लिये नहीं मालूम पड़ता है बल्कि भिन्न २ शिल्पकारो की नियुक्ति के द्वारा इस पार्थक्य ( समानता) की सृष्टि हुई है। नीचे के मजले के लिये जो शिल्पकार नियुक्त किये गये थे, वे मालूम पडता है । कुछ निकृष्ट घरण के थे । इस विषय पर आवश्यक प्रत्यक्ष प्रमाण मिलना सहज नही । इस विषय में सर जौन मार्शलका कहना है कि ठीक मंचपुरी गुफा के समान नीचे का मजला और ऊपर का मजला निर्माण करते समय का व्यवधान बहुत थोडा था, ऐसा मालूम पडता है कि गुफाकी कला तथा उसकी स्थापना के ऊपर अवश्य ही मध्य भारतीय तथा पश्चिम भारतीयो का प्रभाव पडना स्वाभाविक है । इस प्रभावके द्योतक हम जीवित दो प्रमाण पाते हैं। ऊपर के मजले में स्थित एक द्वार रक्षक, जो ग्रीक है अथवा वह यवन वेषभूषा मे सुसज्जित हुआ है । उसीके निकट में एक सिंह तथा उसके श्रारोही की गठन मैं भी पश्चिम एशिया के कुछ चिन्ह दृष्टिगोचर होते हैं । किन्तु नीचे के मजले में स्थित प्रहरी का रूप तथा परिपाटी मे अविकल भारतीय ढंग मालूम पडता है, कारण यहा शिल्पकी निपुण्यता अपरिपक्व है। वह भारतीय नियमानुसार सीमाबद्ध है। -१०० 4

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