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मादि ग्रन्थों में ऐसा वणित है कि श्री कष्ण ने कालिंदी हद में.
हारवश पुराण
सार
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उत्कल भाषा के प्रत्यंत प्राचीन ग्रंथ कवि श्री सारलादास के 'महाभारत में भी राधाच शब्दका उल्लेख है। बोपदी के स्वयंधर के समय लक्ष्य मैंद करते हुए अर्जुन की धुणिमान चक्र के भीतर राधा प्रर्थात लक्ष्य को भेद करने की बात जैन हरिवंश में कही गयी है। पर, संस्कृत 'महाभारत में इस संघाचक्र का कोई भी उल्लेख नहीं मिलता। निःसदेह यह बैन हरिवंश से ही गहित है। *" प्राची माहात्म्य के प्रणेतामों ने अपने विषय वस्तु को 'पद्म पुगण से गहित बताया है, पर मून 'पद्म पुराण में वैसा वर्णन है नहीं। संभव है यह सब जैन 'पद्म-पुराण गृहित वस्तु है । " उत्कल के सुप्रसिद्ध वैष्णव कवि जगन्नाथ दास के भागवत' मे मूल भागवत का अनुशरण रहते हुये भी उसमें चैन तत्वदीक्षा का प्रतिपादन किया गया है। उसके पंचम स्कंध के पांचवें अध्यायमें ऋषभदेवने अपने सौ पुत्रोको जो उपदेश प्रदान किया है वह उपदेश जैनधर्मके तत्वोसे पूर्णतः प्रभावित है। उदाहरणतः
हे पुत्रो, सावधानता पूर्वक मेरे वचन को सुनो, ' कर शुणिकरि भयपरिहरि माग होइले बनमाली,
काली अषरे केहि पकालिदिरे, . . . . . कृष्ण मानन्दरे प्रवेश होहले नटलेल्हे नाठ मंदिर।।१६ मछद .. "राधाचक" बुलुपछि सात बाल उच्ने
। ताले उच्चरे पटाए पछि जे सुसंचे। लक्षे बस धन पारि से पटाए उठि।" सारला महामारख।