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उत्कल में राजत्व करने वाले सोम, वशी राजापों में उद्योत केशरी सब से प्रसिद्ध नरपति थे। कोई कोई उन्हें ललाटदु केशरी भी कहते हैं। उद्योत केशरी शंव धर्म के पृष्ठपोषक के नामसे इतिहास में विख्यात हैं। उनके पिता ययाति महाशिव गुप्तने भूवनेश्वर में सुप्रसिद्ध लिंगराज मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ किया था। इस मंदिर की परिसमाप्ति राजा उद्योत केशरीने कराई थी। उद्योत केशरी की माता कोलावती देवी ने भुवनेश्वर में चारुकला खचित ब्रह्मे. श्वर मदिर तैयार कराया था। उद्योग शिवभक्त होने पर भी जैनधर्मकी ओर प्रगाढ श्रद्धा और अनुराग रखते थे । खडगिरि को ललाटदु केशरी गुफा उनकीहो कीत्ति है। इस में कोई संदेह नहीं । जैन अरहंत और साधुप्रोके लिये सम्राट खारवेलने जिस तरह प्रतीत मे बहुत से गुंफायें खुदाई थी, उसी तरह उन जैन सम्राट का पदानुसरण कर उद्योत केशरी ने भी जैनो के लिये विश्राम स्थल, और माराधना मदिर के लिये खंडगिरि में गुफायें निर्माण कराई थी। केवल 'ललाटदु केशरी गुफा' ही नही बल्कि नवमुनि और बारभूजी गुफायें भी इस काल की कीत्तिया हैं । ऐतिहासिको का कथन है कि नवमुनि गुफा में उद्योत केशरी के राजत्वकाल का एक शिलालेख अब भी है। उद्योतकेशरी के राजत्व कालके अष्टादशवें वर्ष में यह शिलालेख उत्कीर्ण हुमा था। याद रखना होगा कि ठीक इस वर्ष उद्योत की माता कोलावती देवी ने भुवनेश्वर में ब्रह्मश्वर के मदिर निर्माण कार्य पूर्ण किया था। इससे मालूम होता है कि उस समय शैव और जैनधर्म समातराल भाव से उड़ीसामें प्रचलित पै । और गजा उद्योत केशरी दोनो धर्मोको एक नजरसे देखते थे। ' नवनि गुफा की "शिलालिपि से जान पड़ता है कि १८ एपीग्रेफिया इंडिका, १३ १६५-१६