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करतेनेमोर जैन थे।" १ .
विपासपढ़ से एक मामय, फलक मिला है जो मंगलवा एक सीन मोहर है। उसमें लिखा है- "पसयस प्रसनकम बर्षात , "अमात्यस्य प्रसनकस्य" :-यह फलक, प्रमाल प्रसालक की सील मोहर होना सभव है। इस फलको लियो हुए भक्षर भोक उपरोक्त स्वर्ण मुद्रा में व्यबहूत हुए मार एक समय के ही मालूम होते हैं। अगर यह सच है तो प्रसन्नक को, महाराज धर्मदामघरका अमात्य माना जासकता है।" , डॉ. नवीनकुमार साहुने प्रमाणित किया है कि उड्डोसा में मुरुड राजस्व ई दूसरी शताब्दीके शेषमागसे ई० चौथी शताब्दी के मध्यभाग तक प्रचलित था । लेकिन 'मादलापानि' में उल्लेख है कि मुगल राजत्व ई० ३२७ से ४५४ ई. तक चला था। मामला पानि के इस मुगल राजत्व को डॉ० नमीनकुमार साहुने मुरुड राजल माना है और इस राजत्वके काल निर्णय में मायला पांजिकारने जो भूल किया है उसे ऐतिहासिक प्रमाण मितिसे सशोधन किया है।
इस प्रसंगमे बौद्धग्रन्थ 'दादाधातु वश में लिखित बुद्धदत का उपासमान भी अलोचनीय है। इसमें लिखा है कि चौथी प्रताड़ाके प्रारम्भमें कलिगके राजा गृह शिव रेसंभवतः यही गृहशिव राजा मुरुड हो सकते है। वे पहले जैन थे, और बाद को अपनी राजधानी दतपुरमें बुददंतकी महिमा से मूरख होकर के बुद्ध हो गये थे। इससे पाटलीपुत्र के बेन या विषय हरये इस पाहुको पीडाबीन कुमार मारने पा लिलाई पनि पतिको पाक सूबा के सामनगर
जिायेंद्र बिकाशिमाला बनवरिपोर्ट, 14 8. C. De, O. H. R.Neyol. I No.2 ११. • बाहू, ए हिस्ट्री पाक उड़ीसा मा० २५० ३३४
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