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धर्म से जैनधर्म को उत्पत्ति हुई है, परन्तु यह बात प्रमात्मक है। जैनधर्म बौवधर्मसे अति प्राचीन है,इसमें सदेहके लिए स्थान नहीं है । भ. महावीर जैनधर्म के २४ तीर्थकर है । वह वुद्ध के समसामयिक थे। बुद्ध की तरह उनका जन्म राजवंश हुमा था। निहत्थे एक मस्त हाथी को दमन करने तथा उपगन्त महा कठिन तपस्या करने के कारण उनको 'महावीर' जैसे गौरवमय उपनाम से पुकारा गया।
भ०महावीरने उत्कल में प्राकर जैनधर्मकाप्रचार किया था। उत्कल में उनके धर्म का मुख्य केन्द्र कुमारी पर्वत (मानका खण्डगिरि) था। किन्तु उडीसा के महेन्द्र पर्वत में मादि तीर्थंकर ऋषभ का भी प्रास्थान था। माजकल महेन्द्र .पर्वत मजसा में है और राजकीय उडीसा में व हो कर मांध्र में गिना जाता है। इन उल्लेखोंसे उस्कल (उडीसा)में जैनधर्मकी प्राचीनता का बोष होता है।
म. बुद्ध के समसामयिक होने के कारण कई लोग म. महावीर को दुरवंशीय कहते थे। परन्तु ऐसा कहना ठीक नहीं; क्योकि भ. महावीर जातक क्षत्रिय वंशके थे। हां, यह कहना अवश्य ही सच है कि उत्कल में युगपत् हिन्दू, जैनतथा बोट धर्म का प्रचलन था।
भ. महावीर कुण्डग्राम के जातक-क्षत्रिय राजा सिवाके कुलमें जन्मे थे। उनके जन्म लेनेके साथ ही,बल्कि उसके पहले से ही, उनके कुल की मोर राष्ट्रको धन एव ऐश्वर्य में वृद्धि होने के कारण उन का नाम 'वर्षमान' रक्खा गया। प्रौर सभी की यह माशा एवं अभिलाषा थी कि राजपुत्र वर्षमान अपने पिता के राज्यको समधि बढ़ायेंगे; परन्तु वह स्वयं जन्मसे ही जिनेन्द्र भगवानकी तरह साधु बनने की लगनमें थे। युवावस्था रामेश्वर्य कोलात मारकर उन्होंने पडण्यमें जाकर कठोर तपस्या पाईनकी