Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lakshminarayan Shah
Publisher: Akhil Vishwa Jain Mission

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Page 58
________________ जैन "उत्तराध्ययन सूत्र" १८ वां मध्याय में करकण्डे 艾博 के बारे में जो लिखा है, उससे मालूम पड़ता है कि जब द्विमुख पचाल के, नेमि विदेह के और नग्नजित गांधार के ग्रासक थे तब कूरकडु कलिपके राजा थे । इवं चार राजाओं को उत्तराध्ययन सूत्रों के लेखक ने पुरुष पुगव की आख्या दी है।" उन राजाओ ने अपने अपने पुत्रो के हाथो राज्यवार को मके अमके रूपमे जिनपन्थका अवलम्बन किया था, बौद्धोंने राजा करकंड को एक प्रत्यक्ष बुद्ध कंहा है मौर बुद्धिसे पहले जिन महापुरुषों का जन्म हुआ था उनमें से करकंड विशिष्ट स्थान दिया है । " ' "कभूकार जातक" से मालूम पड़ता है, कि दंडपूर करकंड की राजधानी थी । राजाने अपने मनुचरो के साथ दूडपुर की एक म्रवाटिकामे प्रवेश कर एक फलपूर्ण वृक्षसे पका हुआ श्राम लेकर भक्षण किया । यह देख सब ही ने आम तोड के खाये, जिससे वह पेड़ ध्वस्त विध्वस्त हो गया । 4 • राजा करकडू बड़े भावुक थे । वलवान् वृक्षकों उसदशा को देख वे गभीर चिन्तामें मग्न हुये और अन्त मे उन्होंने निश्चित किया कि ससार की घनसपत्ति दु खोका कारण है। इस भावना से वे ससार त्यागी बने और उनको प्रत्येक बुद्धको ख्याति मिली। करकडु के बारे में यह है एक बौद्ध उपाख्यान । जैनियो ने "करक चरिय” नामक एक पुस्तक का प्रणयन किया है । "अभिधान राजेन्द्र " में भी करकड के बारेमें विस्तृत वर्णना है, जनप्रम्प से उपलब्ध उपाख्यान की विस्तृत वर्णना मांगे दी गयी है। कर उपाख्यान पूर्व कालमें चंपक, (चम्पा) नगरी में दधिवाहन नामक एक राजा थे। चेटुक महाराजा की कन्या है- उत्तराध्ययन सूत्र, १८ वा अध्याय, श्लोक ४५-४६ 10- Fousball's Jataka No 3 P. 376. - --

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