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पद्मावती उनको रानी थी। रानी ने अपने प्रथम गर्भके समय एक अद्भुत प्रकारको अभिलाषा को व्यक्त किया था। उन्होने
के कारण वे राजाके सामने इस बातको प्रकाशित नही दर सकी। इस दोहलेको चिन्तास वे क्रमश दुर्बल होने लगी । राजाने उनसे बहुवार अनुनयके साथ उनकी अभिलाषाकै बारेमें पूछी था। अन्त में बड़े कष्टसे पद्मावती ने अपना गोभिलाष व्यक्त किया था । चिकित्सा शास्त्रके प्रनुसार गर्भवती स्त्रीको सकल प्रकार इच्छाओं की पूर्ति होनी चाहिये। अंतः राजा दधिवाहनने रानी को इच्छामें सम्मति दो एवं रानीको अपने हाथों पर बैठाकर स्वय ही पीछे छत्रोत्तोलने करके बनके प्रति अग्रसर हुए । गजा और रानीके वनमें प्रवेश होते ही बारिश हुई। दीर्घ ग्रीष्म के बाद पहली वर्षा की पार्द्रता के कारण मिट्टी से एक प्रकार का सुगंध निकला और मलय पवन के साथ बन को चारों ओर से नाना प्रकार के फूलों की महक छर्ट मांगी। विस्मत मातभामि के प्रशान्त दृश्य ने हाथों के मन में कार की मष्टि की वर्षा के प्रारम में मिट्टी का गंध माघ्राण का हाँधी उन्मत्त होते है। प्रोडा का स्मरण करते हो उस हाथी के गण्डस्थल से मद जल प्रवित हुा । मोर वह निविई परण्य और गानों का उद्धार करने में कोई भी सैनिक सक्षम नहीं हुई। राजा ने प्राणरक्षा के अन्य उपाय न देस सामने हुए
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