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किया हो और इस तरह पराजित होकर सातकिर्ण मेनका माधिवत्य स्वीकार कर लिया हो।
सातकर्णी राजा को हराने के पश्चात् खारवेल की सेना कलिंग न लोटकर दक्षिण कृष्णानदीके तटपर बसे हुए प्रशिक नगर पर जा पहुची' । पुराण के अनुसार जात होता है कि उस समय कृष्णा नदी तट के जो राजा थे, वे बडे ही पराक्रमी और शूरवीर थे। फिर भी उनकी शक्ति खारवेल का मुकाबला करने से हार मान गई। प्रशिक राज्यवर प्राधिपत्य जमा खारवेल सेन्य सहित एक वर्ष तक वही रहा तब सोटा !
उसके बाद खारवेल तीसरे वर्ष कही भी नहीं गया। हॉपी गुफा शिलालेख से ज्ञात होता है कि उस वर्ष उसने अपनी राजधानी में बहुत आनन्द उत्सव मनाये और कहीं नही गया। किन्तु चतुर्थ वर्ष के शुरू होती ही खारवेल ने अपनी सेना सहित विध्याचल की ओर प्रस्थान किया। जिससे सारा विष्याचल निनादित हो उठा । अरकडपुर में जो विद्याधरोको वास ये उन पर अधिकार करके खारवेल ने रथिक और भोजक लोगों। - पर आक्रमण शुरू किया । और इन सभी को परास्त करको. अपने प्राधीन कर लिया • । डॉ० जायसवाल ने 'हाथीगुफा लेखके प्राधारसे बताया है कि इसी वर्ष खारवेल में विद्याधरों . के प्रावास'(The Abode of Vidyadharas)का बीमा द्धार कराया था।
अपने राजक्के पञ्चम वर्ष में खारवेलने पानी राजधानी की शोभा एव समृद्धि बढ़ाने के लिये तनसुलिय-या महरा 1- जायसवाल और प्रोफेसर राखालदास बनर्जी ने इस प्रशिक नगरको.. __भूलसे मुशिक नगर पढा मोर उसीको वे लिखते रहे हैं। . .-' रथिक राष्ट्रिय) और भोजक अशोक के शिलालेखों में उन
उल्लेख है।'