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जैन धर्म की ऐतिहासिक भूमिका
आज भारतका जो हिस्सा 'उत्कल' के नामसे प्रख्यात् है, उसमे डेढ़ करोडकी प्रावादी के भीतर जैनियो की संख्या डेढसी भी नहीं दिखती है, किन्तु एक दिन ऐसा भी था जबकि जैनधर्म उत्कलका राष्ट्रीय धर्मं बना हुआ था । सम्राट् खारबेल के राजत्वकाल में उसी उत्कल में खण्डगिरिको गुफा प्रोमे खोदित शिलालिपियां इस बातकी गवाही देने के लिये काफी है । अस्तु, तबतक जैनधर्म सम्बन्धी आलोचना प्रपूर्ण रहेगी, जबतक उस धर्म के अभ्युदय, प्रसार, प्राधान्य, देशीय परम्परा, संस्कृति, भूगोल, इतिहास, भाषा, साहित्य प्रादि विषयोका पूरापूरा धनुशीलन न हुआ हो और उस अनुशीलन के फलस्वरूप उसका वास्तविक रूप सबके सामने प्रकट न हुआ हो । प्रत उत्कल में जैनधर्मका पर्ययलोचन करने के लिये सबसे पहले भौगोलिक विचार होना जरूरी है ।
कलिंग एक बहुत पुराना देश है। पुराणों तथा धर्मशास्त्रों में इसके प्रमाण अनगिनत है । मिश्री, युनानी तथा चीनी पर्यटकों के भ्रमणवृत्तान्तों में भी उत्कल का उल्लेख हैं ।
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विभिन्न छ: राष्ट्रो के सम्मिश्रणसे इस प्राचीन भूखण्डका निर्माण हुआ है और ये है- मोड़राष्ट्र, कलिंग, कंगोद, उत्कल,
१- कूर्म पुराण, प्र० ४१; प्रग्निः अ०१०; वायु० प्र० ३३; ब्राह्माण्ड अ०१४; बाराह० ० ७४ विष्णु ० प्र० १८ स्कन्द० ५० १६ | 2- Pliny, Ptolemy, Geography. Yuan Chwang eto.
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