Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lakshminarayan Shah
Publisher: Akhil Vishwa Jain Mission

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Page 46
________________ भाई भी इनसे इन्हें (नेमिनापको) ईसा जन्मसे पहले चौदहयों सदीके कह सकते हैं । यह निर्णय पुराणोंके सहारे कियाजाता है। पुराण वणित महाभारत के युद्ध से मेकर चन्द्रगुप्त साम्राज्य तक का काल एक क्रमके साथ निणित है । दस बारह साल के हेर फेर के होते हुए भी उस जमाने के दूसरे विवरणात्मक इतिहास के द्वारा समर्थित है । जो हेर-फेर दिखाई देता है वह केवल चान्द्रमान और सौरमान के कारण ही, इससे सिद्ध होता है कि अलग अलग धर्म-प्रचारको के जीवनकाल का फर्क २५० से ५०० साल के भीतर ही है। ऐसा होना स्वाभाविक है। किसी मवप्रतित धर्मकी दीक्षा कुछ कालके बाद अपनी निर्मल ज्योति खोकर मलिन हो जाती है । यह इतिहास की चिरन्तन रीति है । इस मलिनता को दूर करके नवीन धर्मका प्रवतन या सस्कार के लिये लोकगुरुषों का माविर्भाव हुमा करता है। इस दृष्टिकोण से विचार करनेसे मालूम होता है कि परिष्टनेमि से पहले जो २१ तीर्थङ्कर हो गये हैं उनके समय के अन्तर की गिनती करने पर मादिनाथ का समय करीब ईसा से पहले ३००० साल का हो जाता है । मिश्री, बाबिलनीय पौर सुमेरीय प्रादि प्राचीन सभ्यता के कान के हिसाबसे तथा महेन्-जोदाडो, हरप्पा मोर नर्मदा की उपत्यका में पुरातत्वात्विक गवेषण से जिस कालका निर्णय हुमा है, उससे इस काल ६- ऋषभदेव, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमितिनाथ, पप्रम, सुपाश्वनाथ, चन्द्रगुप्रभु, सुविधिनाथ, पुष्पदन्तनाय, शीतलनाथ, श्रेयासनाथ, बासुपूज्य, विमलनाप, मनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाय, कुन्यनाथ, भरनाथ, मल्लीनाथ मुनिसुवत, नमिनाथ, नेमिनाथ पानाध, महावीर। •जन मान्यताके अनुसार ऋषभदेव भोगभूमिके अन्त और कर्मभूमिकी भादिमें हुए, जिससे अनुमान होता है कि ऋषमदेव पासान युगके बाद कृषियुग मे हुए थे। भ• नेमिका समय भी प्राचीन है। -का.प्र.

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