Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lakshminarayan Shah
Publisher: Akhil Vishwa Jain Mission

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Page 23
________________ शिशु शकुन्तला बनमें पक्षियों की हिफाजत की भोर कम्पने उसे उठा लिया और अपने पाश्रममें पासपोस कर बढ़ाया। बहुपत्नीक राजा दुष्यन्त को देख पावेग के साथ उसने प्रात्मसमर्पण किया । और उससे वह गर्भवती हुई-पादि वातों की पालोचना सेमिरामिसा की बातसे मिलती-जुलती है । लेकिन इस सबके होते हुए भी भारतीय उपाख्यानमें सतीत्वके भाव को ऊंचा स्थान दिया गया है. इतना ही फर्क है । लक्ष्य करने की बात है कि इस शकुन्तला का पुत्र प्रवलप्रताप सम्राट भरत बना जिमके नामानुसार कोई २ कहते है कि इस देशका नाम भारतवर्ष पडा है। द्राविड से रोम तक एक था इस तरह देखा जाता है कि द्राविडसे यूनान, रोम तककी भूमि अति प्राचीनकालम कदाचित् एक-सी थी। इनके पादानप्रदानम काई प्रत्यवाय या अवरोध न था। जैनधर्मने इन स्थानो सर्वत्र प्राकृत धर्मको प्रभावित करके मानव समाज को भोग में सयम पर प्रतिष्ठित किया था। हलसाहब स्पष्ट कहना चाहते है-इन द्राविडोके साथ बेबिलोन मादि इलाके केवल सामान्य राज्य ही न थे, बल्कि इन द्राविड़ो ने प्राचीन सुमेर राज्य में उपनिवेशभो पाबाद किया था और कितने ही विद्वानभीकहते है कि सुमेरमें जिनका उपनिवेश था वे काश्मीरके उत्तर के पामीर इलाके के पश्चिमो प्रदेशसे पाये थे। प्राजकलक जेकोस्लावे. किया देशके प्रेग(Prague) नगर के प्राध्यापक प्राच्यप्रत्नतत्ववित् पण्डिस हाजना साहबने एक प्रत्यन्त उपादेय तथा मवेषणपूर्ण ग्रन्थ लिखा है जिसका नाम है 'Ancient History of Western Asia, India and Crete.' उसमें उन्होने प्रमा. णित किया है कि हिन्दो-यारोपियोके कस्पिीयन झीलके पश्चिमी तोरसे पाकर योरोप और एशिया के नानास्थानो में व्याप्त

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