Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lakshminarayan Shah
Publisher: Akhil Vishwa Jain Mission

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Page 22
________________ षमानेसे इसी रूपमें मातृदेवीको पूजा हो रही थी, भारतमें ईस के पूर्व २००० सालसे अधिक पहले लिंगोपासना के होने के प्रमाण महेन-जो-दड़ोसे मिले हैं। लेकिन यह लिंग इसदेश के सभीदर्शनोके प्रतीक है । और मातृदेवी की 'उमा' नामसे हमबतीदेवी के रूपमें देवतामो को ब्रह्मविद्या सिखाने की बात केनोपनिषत्के तीसरे खण्डमें है । शायद, अम्मा उमामें परिणत हो गया है । और यह हैमवतो अर्थात् हिमालयकी कन्या या हिमालय मे प्राविर्भूत देवी है । सेमिरामिक्ष इस मातृदेवोके सम्बन्धमें ईसासे पूर्न १५०० या २००० साल पहले बेबिलान के उत्तरी सीमा में असुरो के देशमें रानी सेमिरमिस रहती थी। यह एक पद्धत उपाख्यान है । देवी को प्रजनन परायणता तथा तद्विष क्रियामो से यह भरपूर है, शायद, यह किसो एक छोटो-सी स्मृतिको लेकर बना एक पुराण है। तो भी उसमें है-देवी इस कन्याको जन्मके बाद हो जगल में छोडके चली गयो । कुछ कबूतर या पक्षियो ने इसकी हिफाबत को मौर उसे जोवित रखा । किसी गडेरियेने इसे देखा और घर ले जाकर पाल-पोसकर बडा किया। वह खूब हसीन मौर अक्लमन्द थी, कहते है-बेबिलोनकी इस्तर देवीके समान यह भी एक के बाद एकसे शादो करती थी और उसे मारकर दूसरे को अपनाती थी। इसके बारेमें परम्परा इतनी प्रवल और प्रतिष्ठित है कि अब भी उस इलाके लोग बडेबडे पहाड दिखते हुए कहते है- यहाँ सेमिरा मिस के पति दफनाये गये हैं। और सेमिरामिस महापराक्रमशालिनी थो । कहा जाता है-सिर्फ भारत जीतने के लिये माकर पजाब में हारकर लौट गयो । शकुन्तला को कथा यों है-देवी या स्वर्वेश्याकी परित्यक्ता

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