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ग्रामकोट में बड़े होटेका विचार नहीं है। हर एक का हिस्सा बराबर है। जब गांव बना तब मो हर एक को एक एक हिस्सा मिला था। इस हिस्से को पाने में सभी बराबर थे। किसीका ज्यादा न पा, किसोका कम भी न था। एसोन्स शादी करके गृहस्थाश्रम नहीं करते थे। प्रमाण मिला है कि ये पूरंपूर संन्यासो थे। लेकिन वंशपरपराको रक्षाके लिये नये शिष्य ग्रहण करके अपने गणको वृद्धि करते थे। ये पौर मियी औरषुत निरामिषभोजी थे। यह निरामिष भोजन न तो वैदिक है और न किसी दूसरे धर्मकी रीति है । इसमें कोई शक नहीं है कि यह तृष्णात्याग को साधनासे निकलो है।
पैथागोरियन्स यह निरामिष भोजन प्राचीन ग्रोस् (यूनान) के पैथागोरियन्सों (ईसा के पूर्व ७ वी सदो के अन्तिम भाग) और भारफिको (ईसाके पूर्व ७वो मदो के मध्य भाग में) प्रतिष्ठित या। मौर यह भो ज्ञात हुआ है कि इनको धारणा यो-प्रात्मा अमर है। कर्मके अनुसार इस प्रात्मा का जन्मान्तर होता है। यह सब सिवाय जैनधर्मके और कुछ नही है,बाद को सक्रेटिस, प्लेटो, एरिस्ततल मादि मनीषी और पडित इन पंथगौरियन मोर प्रारफिक धर्मके वशधर और भूयोविकास के फल है। सास करके देखना हैं-सक्रेटिस और प्लेटो ने आत्माकी ममरताके बारे में स्पष्ट धारण दे दी है। लेकिन एरिस्ततल ने अपने दर्शनशास्त्रमें जो कुछ लिखा है उस पर साख्य के प्रकृति-पुरुष और जैनधर्मके जीवाजीव को छाया स्पष्ट हैं। पोर इस धर्मसे ईसाके पूर्व दूसरो सदोमं यूनानी स्तोईक और एपिक्युरियन धर्मका जन्म हुआ था। स्तोईक जैनसाधक मोर तपस्वी प्रतीत होते है । और एपिक्युरियन जैनको प्रपरसोमा मर्थात् लोकायत के उपादान से बना था।