Book Title: Tulsi Prajna 2004 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 14
________________ सुश्रुत संहिता में प्रत्येक व्यक्ति को स्वस्थ तथा सुन्दर शरीर के लिए निम्न कार्यों को नित्य आवश्यक कृत्य के रूप में निर्दिष्ट किया गया है – दन्त, आंख, मुख प्रक्षालन, अंजन, ताम्बूल, तैलमालिश परिषेक, बालों में कंघी, व्यायाम, उद्वर्तन (मसाज), उत्सादन (सुगंधित लेप से शरीर को मलना), उद्घर्षण (खुरदरी वस्तु से शरीर को रगड़ना), स्नान, अनुलेप, सुगंधित पुष्प, वस्त्र एवं स्नानादि को धारण करना, आलेप, जूता धारण, केश कल्पना, वारबाण (अंगरखा धारण करना) पगड़ी, दण्डधारा, छाताधारण, बाल व्यंजन (पंखा प्रयोग) एवं संवाहन आदि। ___ शुक्रनीति में प्रतिदिन के प्रसाधनों का वर्णन है। पुराण-साहित्य में प्रसाधन-प्रभेदों का प्रभूत वर्णन मिलता है। बृहत्संहिता में प्रसाधन सामग्री का विशद-वर्णन है - कस्तूरी, जातीफल, मालती, तमाल, नागकेसर, होणुका, जटामांसी, प्रियंगु, मृणाल, गन्धमूल, पीतचन्दन, हरिद्रा, मंजिष्ठा, यष्ठीमधु, वच, धान्यक, मरुबक, मूर्वा, सर्जरस, गुग्गुल, लाक्षा, आमलक, विभीतक, शुष्ठी, पिप्पली, मरीच, कंकोल, दर्भ, मातुलुंग और यक्ष आदि। अमरकोश में प्रसाधन सामग्री का विस्तार से वर्णन है। वहां पर 'परीकर्मांगसंस्कारः' कहकर प्रसाधन वस्तुओं का वर्णन है। शरीर को स्वच्छ करने के लिए मार्टि-मार्जन, सुगंधित वस्तुओं से शरीर को साफ करने के लिए 'उद्वर्तन-उत्सादन', शरीर पर किए गए चित्रकर्म के लिए पत्रलेखा, पत्रांगुलि, तमालपत्र तिलक, चित्रक एवं विशेषक आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। स्तनों और कपोलों पर लेप लगाने के लिए कुंकुम, 'कश्मीरजम्' आदि शब्द आए है। इसी तरह प्रसाधन सामग्री चन्दनादि का उल्लेख है। वात्स्यायनकृत कामसूत्र में स्त्री और पुरुष प्रसाधनों का विस्तार से वर्णन है। बौद्धग्रंथ 'ब्रह्मजालसुत्त' में प्रसाधन का वर्णन है - १. उत्सादन (सुगंन्धित वस्तुओं का शरीर पर लेप)। २. परिमर्दन (मलना, दबाना, चापी मारना)। ३. स्नान। ४. संवाहन (शरीर को एक विशेष प्रकार से धीरे-धीरे दबाना)। ५. आदर्श-दर्पण में मुख देखना। ६. अंजन – आंखों में सुरमा लगाना। ७. माल्यविलेपन – माला धारण एवं सुगंधित द्रव्यों को लगाना। ८. मुखचूर्णक (पावडर)। मुखालेपन – मुख पर सुगंधित लेप लगाना। १०. हस्तबन्ध – हाथों के कंकण पहनना। ११. शिखाबन्धन – बालों को सजाना सवारना। م له - तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2004 - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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