Book Title: Tulsi Prajna 2004 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 29
________________ व्याधितेन स शोकेन चिन्ताग्रस्तेन जन्तना। कामार्त्तनाथ मत्तेन दृष्टः स्वप्नो निरर्थकः॥ अर्थात् बीमार, शोक-चिंता-काम-अहं ग्रस्त व्यक्ति द्वारा देखा गया स्वप्न निरर्थक होता है। दुश्चिंता, अनिद्रा, मानसिक मलिनता, आसक्ति, अस्वस्थता आदि को स्वप्न की अयथार्थता का हेतु माना गया है। इसके विपरीत जो प्राणी धर्म में रत होता है, जिसकी धातुएँ उपशम होती हैं, जो स्थिर-चित्त होता है, जितेन्द्रिय और सदय होता है, जिसके मन-वाणी और अध्यवसाय पवित्र हैं, जो संवृत्त आत्मा है, प्रायः उसके द्वारा देखा गया स्वप्न सफल माना गया है। धारिणी ने शांत-सौम्य वातावरण व प्रसन्न मनसिक अवस्था में शुभ स्वप्न देखा। परम प्रसन्नता के साथ शय्या से उठकर वह मानसिक त्वरा, शारीरिक चपलता, स्खलना, विलंब आदि से रहित राजहंस जैसी गति से राजा श्रेणिक के पास जाती है। मधुर स्वरों से उन्हें जगाकर, उनकी अनुमति पाकर भद्रासन में बैठकर स्वप्न निवेदित करती है। इन सभी क्रियाओं में धारिणी की स्थिर-चित्तवृत्ति की झलक है। स्वप्न-पाठक इस स्वप्न को आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायु, कल्याणकारी एवं मंगलकारी बताते हैं । अर्थलाभ, सुखलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ व राज्यलाभ का सूचक यह स्वप्न हमारी धारिणी को हर्ष व प्रीति प्रदान करता है। मेघकुमार का गर्भागमन इस स्वप्न के साथ जुड़ा हुआ है। ज्ञाताधर्मकथा में चवदह महास्वप्नों का उलेख है। मल्ली जब गर्भ में आते हैं तो उनकी माता प्रभावती चवदह महास्वप्न देखती हैं। वे इस प्रकार हैं – हाथी, वृषभ, अभिषेक, पुष्पों की माला, चन्द्र, सूर्य, सिंह, ध्वजा, पूर्णकुंभ, पद्मयुक्त सरोवर, क्षीर, सागर, विमान (अथवा भवन), रत्नों की राशि और अग्नि। (1.8.29) स्वप्न-पाठक इनके तात्पर्य को बताते हैं - चार दांत वाला हाथी-चतुर्विध धर्मतीर्थ का संस्थापक वृषभ -- भरत क्षेत्र में बोधि-बीज वपन करने वाला सिंह - भव्य जीव रूप वन का संरक्षक लक्ष्मी-अपार ऐश्वर्य का उपभोक्ता माला- तीनों लोकों द्वारा पूजित चन्द्र--- भव्य जीव रूपी कमलों को विकसित करने वाला/शांतिदायी क्षमाधर्म का उपदेष्टा सूर्य-ज्ञान उद्योतक ध्वजा--- धर्म, यश फैलाने वाला कलश शोभा विस्तारक - लं i o oo 24 - तुलसी प्रज्ञा अंक 123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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