Book Title: Tulsi Prajna 2004 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 59
________________ भाग-2 शंका-समाधान पूर्वोक्त समग्र विवेचन से यह भलीभांति स्पष्ट हो जाता है कि इलेक्ट्रीसीटी या बिजली अपने आप में सचित्त तेउकाय नहीं है। अब इलेक्ट्रीसिटी के प्रयोग के कारण कहां तेउकाय की उत्पत्ति होती है और कहाँ नहीं होती, उस विषय में कुछ भ्रांतियां हैं। उनका निराकरण अपेक्षित है। प्रश्न - 1 "स्वीच ओन करने के बाद, बल्ब, प्रकाश को फैलाता हुआ दिखाई देता है। जिससे इलेक्ट्रीक बल्ब में बिजली का प्रवेश और बल्ब के अन्दर से प्रकाश स्वरूप तेजाणु का बहिर्गमन सिद्ध होता है तथा जिस मार्ग से पुद्गल स्वरूप बिजली अन्दर प्रवेश करती है उस मार्ग से तार से या अन्य कोई मार्ग से उसके लिए प्रयोग्य जरूरी वायु-द्रव्य भी अंदर जा सकता है। कार्य हो वहाँ कारण को अवश्य मानना पड़ता है। कारण बिना कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती। जैसे जहाँ धुआँ होता है वहाँ आग का होना सिद्ध होता है। वैसे बल्ब में उष्ण प्रकाश की एवं अग्नि की हाजरी दिखाई देने से भगवती सूत्र में बताए गए पूर्वोक्त नियमानुसार वहाँ वायु का होना भी सिद्ध होता है, क्योंकि बिना कारण के कार्य नहीं हो सकता। यह तर्कशास्त्र का मूलभूत सिद्धान्त है।' उत्तर- तार द्वारा जो विद्युत्-प्रवाह बल्ब के अन्दर पहुंचता है, वह धातु के तार की अपनी संरचना के कारण संभव है। विद्युत् की सुचालकता इसके लिए जिम्मेदार है। विद्युत्प्रवाह के रूप में चलने वाले पुद्गल और अग्नि को जलाने वाली ऑक्सीजन वायु के पुद्गल में अन्तर है। तार विद्युत् का वाहक है, ऑक्सीजन या अन्य वायु का नहीं। इसलिए ऐसा मानना कि किसी भी तरह ऑक्सीजन या वायु अन्दर चली जाती है, न तर्कसंगत है और न विज्ञान संगत। । पहले तो विद्युत् को सचित्त तेउकाय या अग्नि के रूप में मान लेना और फिर उसको सिद्ध करने के लिए इस प्रकार का काल्पनिक आधार प्रस्तुत करना अपने आप में न्यायसंगत नहीं हैं। प्रत्युत् आगमवचन द्वारा जब स्पष्ट रूप से वायु के बिना अग्नि के अस्तित्व को अस्वीकार किया गया है तथा यह वायु ऑक्सीजन (या प्राण वायु) ही है, ऐसा प्रत्यक्ष अनुभव से प्रमाणित हो रहा है तब उसके अभाव में तेउकाय के अस्तित्व को किसी भी प्रकार सिद्ध नहीं किया जा सकता। बल्ब में ऑक्सीजन के सिवा अन्य वायु का अस्तित्व होने पर भी अग्नि नहीं हो सकती, क्योंकि वहां उपस्थित अन्य वायु निष्क्रिय है। यदि नाईट्रोजन, आरगोन आदि निष्क्रिय वायु में दहन-क्रिया संभव होती तो ऐसे वायु के अन्दर फिर दीपक आदि क्यों 54 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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