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ट्यूब चालू होती है तब-तब ओक्सीडेशन की प्रक्रिया निरन्तर चालू ही रहती है। एक स्थिति ऐसी आ जाती है कि ट्यूबलाइट के ज्यादातर भाग का फोस्फरस ऑक्सिडेशन प्रोसेस से कार्बन के रूप में परिणत हो जाता है, तब ट्यूब बंध पड़ जाती है और इसके साइड में कार्बन के काले धब्बे दिखाई देने लगते है।
उत्तर- हमने प्रथम भाग में ट्यूबलाइट की प्रक्रिया की सम्पूर्ण व्याख्या प्रस्तुत की थी तथा उसमें स्पष्ट किया था कि मूलतः ट्यूबलाइट में कहीं पर भी जलने की क्रिया नहीं होती है। उसमें ट्यूब में भरी हुई कम दबाव पर मयूरी-वेयर (यानी वाष्प रूप में पारे) में डीस्चार्ज द्वारा आयनीकरण किया जाता है तथा उस समय जो अल्ट्रा वायलेट विकिरण से स्फुरदीप्ति वाले पदार्थ प्रकाशित होने से ट्यूब का प्रकाश प्राप्त होता है। उसके साथ यह भी स्पष्ट किया था कि उसमें जो "ब्लेकनींग" (बाला धब्बा) होता है, वह कार्बन नहीं अपितु इलेक्ट्रोड के धातु का "स्पूटरींग" यानी "चिटकना" या सरण की प्रक्रिया का ही परिणाम है। उसमें बाहर से वायु या ऑक्सीजन के प्रवेश का कहीं अवकाश ही नहीं है। इसे "फोस्फरस का आक्सीडेशन बताना" नितान्त गलत है। न तो आक्सीडेशन होता है, न ही कार्बन की उत्पत्ति।
- इसीलिए तेउकाय नहीं है। आकाशीय विद्युत् खुली हवा में तीव्र उष्णता, तीव्र प्रकाश, तीव्र वोल्टेज आदि के कारण अग्नि पैदा करती है जबकि ट्यूब में ऑक्सीजन का अभाव है, इसलिए तेउकाय का अभाव है।
इलेक्ट्रोनिक्स संयंत्रों में अर्ध वाहक (Semi-conductors) का प्रयोग होता है। डायोड आदि की सर्किट, बटन-सैल आदि में सिलीकोन आदि अधातु पदार्थ का उपयोग किया जाता है जिसमें बहुत कम वोल्टेज पर भी विद्युत्-प्रवाह सक्रिय बनता है। इसमें तापमान की वृद्धि भी नहीं जैसी होती है। प्रकाश का विकिरण भी बहुत साधारण होता है। आक्सजीन का अभाव होता है। इन सब आधारों पर इन प्रक्रियाओं में कहीं भी तेउकाय का प्रंसग नहीं बन सकता।
प्रश्न-4. क्या इलेक्ट्रीक स्पार्क सचित्त तेउकाय नहीं है? जब स्वीच ऑन या ऑफ की जाती है, तब छोटा-सा स्पार्क होता ही है। इस चिनगारी में और अग्नि जलते समय (अंगारे आदि में से) निकलने वाली चिनगारी में क्या अन्तर है? यदि इलेक्ट्रीक स्पार्क सचित्त तेउकाय है, तो फिर साधु क्या स्वीच ऑन या ऑफ कर सकता है या करवा सकता है या करने का अनुमोदन कर सकता है ?
उत्तर- प्रथम भाग के पांचवें तथा छठे विभाग में हम विद्युत् चुम्बकीय तरंगों, गैसों में निरावेशीकरण आदि की चर्चा कर चुके हैं। उसके अन्तर्गत हर्ट्ज के प्रयोगों में "इलेक्ट्रीक
- तुलसी प्रज्ञा अंक 123
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