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के कारण अग्नि की क्रिया नहीं होती। अकस्मात् किसी कारण से वाल्टेज में अत्यधिक वृद्धि हो जाए तथा अन्य सावधानी न हो, तो कभी-कभार स्वीच का स्पार्क भी खतरा बन जाता है। यह केवल आपवादिक है।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि सामान्यतः स्वीच ऑन करने में होने वाले स्पार्क में अग्नि आन करने में होने वाले स्पार्क में अग्नि की उत्पत्ति नहीं है। यह वैसा ही है जैसा ऊनी कंबल, पोलीथीन आदि के प्रयोग में स्पार्क होते हैं, पर आग नहीं लगती।
प्रश्न 5. क्या माइक-लाईटड-फोन-फैक्स टेलेक्ष इत्यादि इलेक्ट्रीसीटी आधारित साधनों का उपयोग साधु कर सकते हैं ?
उत्तर- प्रथम तो यह समझना है कि इन सब साधनों का प्रयोग यदि गृहस्थ अपनी सुविधा के लिए करते हैं, तो उसमें साधु दोष के भागी कैसे बनेंगे?
___ दूसरी बात है- इलेक्ट्रीसीटी के उपयोग वाले साधनों में क्या तेउकायिक जीव की विराधना होती है? जैसे पूर्व चर्चा से स्पष्ट हो चुका है कि इलेक्ट्रीसीटी स्वयं निर्जीव है। उस आधार पर इन साधनों के प्रयोग में से तेउकायिक जीव की विराधना का प्रसंग कैसे आएगा? इस संबंध में भी पूर्व प्रश्नों में स्पष्टीकरण हो चुका है।
अब बात रहती है व्यवहार की। व्यवहार की दृष्टि से यही उचित है कि साधु न स्वयं इनका प्रयोग करे, न औरों से करवाए (न अनुमोदन करे)। लाइट आदि का गृहस्थों द्वारा अपने उपयोग के लिए जो प्रयोग होता है, तो उससे प्राप्त सहज प्रकाश आदि का उपयोग साधु द्वारा किए जाने पर कोई दोष नहीं लगता। ( इसकी चर्चा हम कर चुके हैं।)
प्रश्न 6- बल्ब वगैरह में स्थूल रूप से ही वेक्युम किया जाता है। इसलिए तथाविध पतली हवा स्वरूप वायुकाय का वहाँ अस्तित्व मानने में कोई विरोध नहीं है।
यदि बल्ब में 100 प्रतिशत शून्यावकाश करने में आए तो फिलामेंट में उत्पन्न होने वाला प्रकाश और उष्णता बल्ब की काच की दीवाल तक पहुँच ही नहीं पाएंगे, क्योंकि फिलामेन्ट में से बल्ब की दीवाल तक पहुँचने के लिए कोई वाहक द्रव्य ही नहीं है। वाहक द्रव्य के बिना प्रकाश, उष्णता और प्रकाश को बल्ब की काच की दीवाल तक पहुँचाने में सहाय कर सकता है।
"वास्तव में जिनागम के सिद्धान्तों को साइन्स की दृष्टि से विचारना हो तो उसके पूर्व साइन्स का व्यवस्थित अध्ययन कर लेना चाहिए, जिससे जिनागम एवं साइन्स दोनों में से किसी का भी अन्याय न हो। ऐसा हो तभी कुछ अंश तक प्रामाणिकता रखी है-ऐसा कहा जा सकता है।" तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2004 5
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