Book Title: Tulsi Prajna 2004 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 71
________________ जैसे ऊपर बताया गया है, मशीन में केरोसीन के स्थान पर "अज्वलनशील तरल पदार्थ" भी coolant के रूप में रखे जाते हैं जिससे खतरा पैदा न हो। यह सिद्ध करता है कि अज्वलनशील पदार्थ कितने ही उच्च वोल्टेज के बावजूद आग नहीं पकड़ते। ___ 2. दूसरा उदाहरण है-अत्यधिक उच्च वोल्टेज के विद्युत् प्रवाह में "आयल सर्किट ब्रेकर" का उपयोग। इस व्यवस्था द्वारा जब सिकी फाल्ट के कारण वाल्टेज या करंट में अचानक वृद्धि होने पर सर्किट तोड़ दी जाती है। इस व्यवस्था में भी तेल के भीतर स्वीच रहने से ऑक्सीजन के अभाव में स्पार्क का डीस्चार्ज केवल "फ्लेश' पैदा करेगा पर अग्नि नहीं। "आयल सर्किट ब्रेकर" की जानकारी टिप्पण में दी गयी है। 3. तीसरा उदाहरण-ऊनी शाल या प्लास्टीक से निकलने वाले इलेक्ट्रीक स्पार्क । यह स्पार्क यद्यपि खुली हवा में आक्सीजन के साथ सम्पर्क में होता है तथा ज्वलनशील पदार्थ - ऊन, प्लास्टीक आदि भी विद्यमान है पर पर्याप्त तापमान के अभाव के कारण 'आग' नहीं लगती अन्यथा ऊनी शाल या कम्बल अथवा प्लास्टीक की थैली आदि जल जाते हैं। "थ्रेसोल्ड" तापमान के अभाव में यानी ज्वलनबिन्दु से कम तापमान में जो विद्युत् चुम्बकीय ऊर्जा या विकिरण होता है, वह "कंबश्चन" की प्रक्रिया करने में सक्षम नहीं है। इसी आधार पर जैन साधु के लिए ऊनी शाल का प्रयोग हजारों वर्षों से मान्य है। यदि इन चिनगारियों को भी "मुर्मुर" की कोटि में रखी जाए, तो फिर ऊनी शाल का प्रयोग जैन साधु कैसे कर सकते हैं? अब हम मूल प्रश्न पर आते हैं उत्तर- विद्युत्-पथ (Cicuit) को बाधित करने के लिए स्वीच का प्रयोग किया जाता है। ज्योंही स्वीच ऑन होता है, खाली स्थान में डीस्चार्ज गुजरता है जो क्षणिक ही होता है। यहाँ खाली स्थान में हवा (ऑक्सीजन) भी विद्यमान है पर डिस्चार्ज की तीव्रता का आधार वोल्टेज पर है। अति तीव्र वोल्टेज हो तब तो स्पार्क का तापमान भी अत्यधिक हो सकता है, जो थ्रेसोल्ड तापमान से अधिक होने से तेउकाय की उत्पत्ति का निमित्त बन सकता है। यदि तापमान (न्यूनतम सीमा) से नीचे हो, तो स्पार्क हवा के सम्पर्क में भी अग्नि यानी कंबश्चन की क्रिया नहीं कर सकता है। इसीलिए जहां उच्च वाल्टेज का विद्युत्-प्रवाह होता है वहां आग की संभावना बनी रहती है, जिसे टालने के लिए स्पार्क को किसी भी Coolant द्वारा मंदीकृत किया जाता है तथा ऑक्सीजन के सम्पर्क में ना आए, ऐसी सावधानी रखी जाती है। 'फ्यूज' की व्यवस्था भी इसीलिए की जाती है कि अधिक वाल्टेज होने पर फ्यूज का तार पिगल जाता है और सर्किट टूट जाती है, जिससे आग नहीं लग सकती। सामान्य वाल्टेज पर स्वीच में होने वाले स्पार्क का हवा से सम्पर्क होने पर भी मंद ऊर्जा होने 66 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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