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बुझ जाते ? यह तो बहुत ही सामान्य प्रयोग के आधार पर भी ज्ञात हो सकता है कि निष्क्रिय वायुओं में अग्नि बुझ जाती है। यहां यह तर्क देना कि क्लोरिन या फ्लोरिन में लोहा जलता है, भी संगत नहीं है, क्योंकि बल्ब में क्लोरिन, फ्लोरिन भी नहीं होते।
प्रश्न- 2 यहाँ शायद किसी को शंका हो सकती है कि 'बल्ब के अन्दर वायु मौजूद हो और बिजली से वहाँ प्रकाश उत्पन्न होता है तो फिर बल्ब के टूट जाने के पश्चात् बिजली का प्रवाह विद्यमान होने पर भी बल्ब में प्रकाश क्यों नहीं होता?' परन्तु यह शंका उचित नहीं है। इसका कारण यह है कि बल्ब के अन्दर अग्नि प्रकट करने में जितने प्रमाण में वायु की आवश्यकता होती है उस प्रमाण से बहुत ज्यादा वायु अथवा बल्ब में प्रकाशमान टंगस्टन तार का विरोधी वायु, बल्ब के टूट जाने पर वहाँ एकत्रित होने से लाईट बंद हो जाती है। वायु जहाँ होती है, वहीं अग्नि प्रकट हो सकती है- यह सिद्धान्त मान्य होते हुए भी जैसे चीमनीवाला जलता हुआ लालटेन चीमनी टूट जाने पर बाहर से वेग से आते हुए ज्यादा वायु के कारण बुझ जाता है, इस प्रकार से हम उपर्युक्त बात समझ सकते हैं।
व्यक्ति भोजन-पानी के आधार पर जीवित रहता है किन्तु ज्यादा प्रमाण में भोजनपानी का उपयोग करने में आए तो वही भोजन उसकी मृत्यु का कारण भी बन सकता है। उसी प्रकार जहाँ वायु हो वहीं अग्निकाय उत्पन्न हो सकता है। यह बात सत्य है, किन्तु आवश्यकता से अधिक वायु का दबाव आने से अग्नि बुझ जाती है। फूंक मारने से दिया बुझ जाता है। तेल से जलते हुए दिये पर एक साथ ज्यादा तेल डालने पर वह बुझ ही जाता है। इसलिए कहा है-'अति सर्वत्र वर्जयेत्' । हालाँकि यह बात जन सामान्य समझ सके इस आशय से लौकिक दृष्टिकोण से बताई है। इस बात को वाचक वर्ग ध्यान में ले।
- इसी घटना को साइन्स की दृष्टि से परखना हो तो ऐसा कहा जा सकता है कि वायर में से इलेक्ट्रीसीटी प्रसार होते समय यदि बल्ब टूटा हुआ हो तो बाहर के प्रतिकूल वायु के सम्पर्क से बल्ब का फिलामेंट जल जाता है। इसीलिए टूटा हुआ बल्ब प्रकाश नहीं देता। बल्ब में टंगस्टन धातु से बना हुआ एक पतला वायर होता है। उसे अंग्रेजी में 'फिलामेंट' कहते हैं। स्वीच को 'ओन' करते ही इलेक्ट्रीसीटी का फ्लो स्वीच से गुजर कर बल्ब में पहुँचता है। जब बल्ब में स्थित फिलामेंट में बिजली का प्रवाह पहुँचता है तब वह फिलामेंट गरम हो जाता है। यह गर्मी इतनी उग्र होती है कि वहाँ प्रकाश उत्पन्न होता है। टंगस्टन नाम की धातु ३४२० से. के तापमान पर पिघलती है तथा ५८६० से. तापमान पर उबलती है (देखिए बंसीधर शुक्ल कृत-प्रसन्निका विक्रमकोश पृष्ठ ५७) प्रकाशमान बल्ब के फिलामेंट में २७६० से. तापमान होता है, जिसकी वजह से बल्ब में बिजली की गर्मी से यह वायर पिघलता नहीं है, किन्तु टूटे हुए बल्ब में बाहर के प्रतिकूल वायु का फिलामेंट के साथ संयोग तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 20040
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