Book Title: Tulsi Prajna 2004 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 38
________________ शीत युद्ध जिसने 1945-90 तक के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को घेरे रखा था, ने इस लक्ष्य की प्राप्ति अप्रत्यक्ष रूप में तथा नकारात्मक रूप में की। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में आतंक के सन्तुलन की स्थापना करके जहाँ पर यह विश्व युद्ध को रोकने में सफलता प्राप्त हुई, वहाँ यह कई एक स्थानीय मुद्दों को नहीं रोका जा सका तथा वास्तव में यह अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों, तनावों और दबावों का कारण बनी। अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय बड़ी कठिनता से इन स्थानीय मुद्दों तथा संकटों को सीमित रखने में सफल रहा तथा इस कार्यवाही ने इससे संकट समाधान करने की अपनी सकारात्मक योग्यता को भी दर्शाया परन्तु इससे विशेषकर एशिया तथा अफ्रीका के नए राज्यों को शीत युद्ध की बहुत अधिक कीमत चुकानी पड़ी। नये राज्यों ने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में अपने उचित अधिकारों तथा स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए गुट निरपेक्षता को अपना लिया। गुट निरपेक्ष आन्दोलन के विकास ने अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को बनाए रखने के पक्ष में तीसरी दुनिया में जागृति तथा प्रयासों के प्रति चेतना पैदा की। इस बात को विकास की आदर्श परिस्थिति के रूप में मान्यता दी गई। __ संयुक्त राष्ट्र संघ ने कुछ संकटों के समय अपनी सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को प्रारम्भ किया ताकि विभिन्न राज्यों के मध्य उत्पन्न हुए स्थानीय मुद्दों को सीमित तथा समाप्त किया जा सके। इसने अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय की शान्ति तथा सुरक्षा को बनाए रखने वाली संस्था के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया। इसके सभी प्रयासों का उद्देश्य विश्व शान्ति तथा सुरक्षा की रक्षा करना था। विश्व शान्ति के लिए किए गए प्रयासों के परिणाम शीत युद्ध के अन्त तथा निशस्त्रीकरण तथा नियन्त्रण के पक्ष में आई नई जागृति, सभी द्वारा लोकतन्त्र, विकेन्द्रीकरण, विकास, विद्युतीकरण, शस्त्रों की समाप्ति के आदेशों को स्वीकार किया जाना, शान्ति की सुरक्षा के लिए अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सी के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ में नया विश्वास, शान्ति आन्दोलनों की बढ़ती हुई शक्ति तथा लोकप्रियता, विश्वसनीयता, आत्मनिर्भरता के प्रति बढ़ रही जागृति, पश्चिमी यूरोपीय राष्ट्रों में अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्रीय एकीकरण की प्रवृत्ति, कार्यात्मकतावाद तथा राष्ट्रवादी सार्वभौमिकता नहीं सार्वभौमिकतावादी राष्ट्रवाद में नया विश्वास तथा युद्धके विरुद्ध दृढ़ संकल्प सभी वर्तमान समय के सकारात्मक विकास हैं, लेकिन इसके साथ ही उत्पन्न हुआ एकल ध्रुवीकरण, नीओ के सम्बन्ध में उत्पन्न गतिरोध, धनीराज्यों (जी-7) द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय दादा बनने के संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रयास, कई विरोध केन्द्रों, जातीय तथा गैर जातीय जैसे फिलीस्तीन, कश्मीर, लेबनान, ईराक, युगोस्लविया, कम्बोडिया, साईप्रस आदि की विद्यमानता, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद पर संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभुत्व, परमाणु राष्ट्र द्वारा विपरमाणुकरण करने की अनिच्छा, ये सभी वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय दृश्यपटल की नकारात्मक तथा खतरनाक विशेषताएं हैं । ये सभी तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2004 - 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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