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हजारों लाखों वर्ष निकल जाने पर भी कभी नहीं टूटेगा। इसी का नाम अखण्ड वागिलु अर्थात् बिना जोड़ का द्वार है।
इस द्वार की नक्कासी देखने लायक है। बीच में लक्ष्मीजी की खिले कमल में विराजमान मूर्ति है, जिन्हें दो हाथी स्नान करा रहे हैं । यह चामुण्डराय ने बनवाया था।
6. ब्रह्म देव मन्दिर- यह छोटा सा देवालय विन्ध्यगिरि के नीचे सीढियों के समीप है। इसमें सिन्दूर से रंगा हुआ एक पाषाण है जिसे लोग ब्रह्म या जारु गुप्पे अप्प कहते है।
7. गुल्लिकायिजी- यह मूर्ति भक्तराज गुल्लिकायि की है। इसे चामुण्डराय ने ही स्थापित करवाया था। इस स्तम्भ के ऊपरी भाग में तो यक्ष ब्रह्मदेव बैठे हैं जिनकी बहुत ही चमकदार आँखें हैं।
कहा जाता है कि जब चामुण्डराय ने यह मूर्ति बनवायी तो उन्हें घमण्ड हो गया और इस घमण्ड का नाश करने के लिए भगवान ने जल अभिषेक ग्रहण नहीं किया। कई बड़े-बड़े विद्वानों, योद्धाओं द्वारा तीर्थंकर की मूर्ति के जल चढ़ाने (जलाभिषेक करने) पर भी जल नीचे चरण कमल तक नहीं पहुंचा तब एक बुढियां, जो हाथ में छोटा सा पात्र लेकर आयी, उसी के जल से भगवान का अभिषेक हुआ। इसी वजह से बाहुबलीजी की मूर्ति के समीप ही गुल्लिकायिजी की मूर्ति की स्थापना हुई है, जिसके हाथ में जल-पात्र है।
8. गोम्मटेश्वर- अखण्डवागिलुद्वार से घुसने पर करीब 65 सीढ़ियां चढ़ने के बाद पर्वत शिखर के ऊपर अवस्थित एक बड़ा आंगन है, इसी में गोम्मटेश्चर भगवान की मूर्ति स्थापित है। इस परकोटे को भक्तराज गंगराज ने सन् 1166 ईस्वी में बनवाया था। गंगराज द्वारवती हलेबीड नगरी के परम प्रतापी होय्यसल सम्राट विष्णुवर्धन के नौ सेनापतियों में से एक थे। ये परमवीर तो थे ही, साथ ही इनके समान जैन समाज में आज तक दूसरा कोई दानी नहीं हुआ। इस परकोटे की दीवार लोहे की बनी है । लगभग इसे 1000 वर्ष बने हो गये पर जरा सी भी कहीं से मोच नहीं आयी है। पत्थर की दो-दो फीट चौड़ी शिलाओं को काटकर उन्हें एक के ऊपर एक रखकर ये दीवारें खड़ी की गई हैं। ऋतुओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ा मानो काल की तरह जन्म-जरा-मृत्यु से परे है।
इस परकोटे के भीतर मण्डपों में इधर - उधर कुल 43 जिन-मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। अधिकांश मूर्तियाँ 4 फुट ऊंची हैं। पाँच-छह मूर्तियाँ 5 फुट तथा एक मूर्ति 6 फुट और तीन मूर्तियाँ तीन से साढ़े तीन फुट की हैं। परकोटे के सामने सिद्वर बस्ती है। परकोटे के द्वार पर दोनों बाजुओं पर 6-6 फुट ऊंचे द्वारपालक है। परकोटे के बाहर गोम्मटदेव के ठीक सम्मुख लगभग 6 फुट की ऊंचाई पर ब्रह्मदेव स्तम्भ है। इसमें ब्रह्मदेव जी की पद्मासन मूर्ति है। ऊपर गुम्मट है। स्तम्भ के नीचे पांच फुट ऊंची गुल्लिकायिज्जिी की मूर्ति है।
बाहुबली भगवान की मूर्ति एक पहाड़ पर प्रतिष्ठित है, जो अपनी विशालता व सुन्दरता के लिए सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है। शायद भगवान किसी की तरफ तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2004 -
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