Book Title: Tulsi Prajna 2004 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 53
________________ बल्ब में यदि कोई ऑक्सीजन बच भी जाए तो उसे नष्ट करने के लिए एक तरकीब और काम में ली जाती है। उसके लिए बल्ब के भीतर थोड़ा सा फास्फोरसआधृत "गेटर" (लेप) होता है, जो भीतर बचे हुए ऑक्सीजन के साथ अनुक्रिया कर उसे समाप्त कर देगा जब पहली बार फिलामेंट को गर्म किया जाएगा। इस प्रकार बल्ब-निर्माता इस बात का पक्का निश्चय कर लेते हैं कि बल्ब में टंगस्टन के फिलामेंट के साथ अनुक्रिया करने वाला कोई ऑक्सीजन विद्यमान नहीं है। प्रश्न – ट्यूब लाईट (फ्लोरेन्शन्स लाइट) की अपेक्षा बल्ब की लाइट अधिक गरम क्यों हो जाती है? उत्तर - बल्ब की लाईट में रहा हुआ टंगस्टन का छोटा-सा फिलामेंट लगभग 2500 डिग्री सेल्सियस तक गरम हो जाता है। इस तापमान पर फिलामेंट जिन उष्माविकिरणों का उत्सर्जन करता है उनके साथ अच्छी मात्रा में दृश्य प्रकाश का भी उत्सर्जन होता है। किन्तु इसके साथ-साथ फिलामेंट अवरक्त (इन्फ्रारेड) विकिरणों का उत्सर्जन भी बड़ी मात्रा में करता है जो उष्मा-प्रकाश के रूप में है और उसके द्वारा उष्मा ऊर्जा को बल्ब के काच तक चालन (कंडक्शन) और संवहन (कन्वेक्शन) प्रक्रिया के माध्यम से पहुँचाया जाता है। जब कोई व्यक्ति बल्ब के समीप अपना हाथ रखता है तो उसे अवरक्त-प्रकाश तथा उष्मा इन दोनों की अनुभूति होती है तथा बल्ब गरम लगता है। इसके विपरीत ट्यूब लाइट में - __फ्लोरेसेंट लाईट प्रकाश देती है, उष्मा पैदा नहीं करती। इसमें इलेक्ट्रोन का प्रवाह पारे (मयूंरी) के परमाणुओं से टकराते हैं। इससे ये परमाणु अल्ट्रा-वायलेट (परा-बैंगनी) किरणों को उत्सर्जित करते हैं। ये किरणें ट्यूब की अंदर की दीवारों पर लिपे हुए फोस्फोरस पाउडर पर गिरती है जिससे दृश्य प्रकाश के रूप में इनका उत्सर्जन होता है। सिद्धान्ततः इस सारी प्रक्रिया को बिना किसी उष्मा-ऊर्जा उत्पादन के सम्पादित किया जा सकता है। फिर भी व्यवहार में कई अपरिहार्य अपूर्णताओं के कारण थोड़ी-बहुत विद्युत्-ऊर्जा उष्मा में परिणत हो ही जाती है जिसके फलस्वरूप ट्यूब गरम तो नहीं, मामूली कोष्ण (warm) हो जाती है। प्रश्न – धातु जैसा पदार्थ जब गरम किया जाता है, तो प्रकाश क्यों देता है? उत्तर - सभी पदार्थ उष्मा-विकिरणों का उत्सर्जन करते ही रहते हैं। ये विद्युत्चुम्बकीय तरंगों के रूप में सभी पदार्थों से निकलती रहती हैं जिसके माध्यम से उष्मा (ऊर्जा) का हस्तान्तरण होता रहता है। यह इसलिए होता है कि सभी पदार्थों में विद्युन्मय आवेश-युक्त कण होते हैं और जब कभी इन विद्युत्-आवेश-युक्त कणों को प्रवेग मिलता है, उन पदार्थों में से विद्युत्-चुम्बक तरंगों का उत्सर्जन होता है। चूंकि सभी पदार्थों में अपनी48 - तुलसी प्रज्ञा अंक 123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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