Book Title: Tulsi Prajna 2004 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ शान्ति का ऐतिहासिक सन्दर्भ में अर्थ विश्व की विभिन्न संस्कृतियों में 'शान्ति' शब्द को कई अर्थों में प्रयुक्त किया गया है। भारत के इतिहास में शान्ति का सामञ्जस्य, व्यक्तिगत आन्तरिक अवस्था के लिए प्रयुक्त किया गया है। 'ओम शांति' शब्द को ब्रह्माण्ड की चेतना के लिए प्रयुक्त किया गया है। शैलोम (यहूदी संस्कृति में शांति) यहूदी लोगों में मिलने का एक तरीका है। यह शांति से सम्बन्धित है जो कि बाह्य समृद्धि लाती है। अरबी संस्कृति में अभिवादन शब्द 'सलाम' अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों में शांति की इच्छा को ही बताता है। युनानियों में 'इरीन' शांति की देवी है जो कि भौतिक समृद्धि लाती है। पैक्स' शांति के अर्थ में प्रयुक्त रोमन शब्द है। यह एक समझौता है दो व्यक्तियों अथवा दो राष्ट्रों के मध्य। पैक्ट के अर्थ में पैक्स अभी भी सन्धियों के लिए प्रयुक्त किया जाता है। उदाहरणार्थ पेरिस की शांति, वसार्य की शांति और इसी प्रकार अन्य। इस प्रकार शांति केवल युद्ध को रोकना अथवा संघर्षों का निदान नहीं है वरन् कुछ आदर्शों में व्यक्त जीवन का एक मार्ग है। संस्कृति शांति शब्द को अर्थ प्रदान करती है। शांति एक ऐसी अवस्था है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति एवं संस्कृति अपने अनूठे तरीके से पुष्पित हो सके। गाँधीय शान्ति जहाँ तक गाँधीजी का प्रश्न है, उन्होंने स्वयं शांति अथवा शान्ति निर्माण का कोई दर्शन अहिंसा के सिद्धान्तों के समुच्चय रूप में व्यवस्थित प्रस्तुति द्वारा निर्मित्त नहीं किया। गाँधी एक सक्रिय एवं व्यावहारिक दार्शनिक थे। उनकी अधिकांश दार्शनिक कृतियाँ उन समस्याओं के हल से प्रेरित व निर्धारित होती थी, जो कि उस समय व युग के लोगों, समाजों व देश के सामने थी। उनके द्वारा लिखित अथवा बोले गए शब्दों से अधिक उनकी जीवन गाथा सम्पूर्णता से उस ध्येय को स्पष्ट करती है, जिसके लिए वे उम्र भर प्रयासरत रहे। उनकी यह औपचारिक स्वीकारोक्ति 'मेरा जीवन ही मेरा संदेश है' मात्र एक वक्तव्य नहीं है। अत: गाँधी का शान्ति एवं अहिंसा के दृष्टिकोण को जानने हेतु हमें उनके जीवन की ओर देखना होगा तथा उन मूल्यों व सिद्धान्तों को समझना होगा जो कि उनकी गतिविधियों के आधार बने। शांति के नये प्रत्यय का निर्माण करते समय दासगुप्ता गाँधी द्वारा परिभाषित शान्ति के प्रत्यय की विस्तार से व्याख्या करते हैं। शांति को परिभाषित करते समय गाँधी अन्य रास्ता अपनाते हैं। वह सबसे पहले इसके विलोम हिंसा को परिभाषित करते हैं। गाँधी का हिंसा से तात्पर्य बल प्रयोग, दबाव अथवा खून खराबा से ही नहीं था। उसकी हिंसा की परिभाषा में सभी प्रकार का सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक शोषण चाहे व्यक्तियों द्वारा हो, राष्ट्रों द्वारा हो, पुरुषों द्वारा महिलाओं का हो अथवा व्यक्तियों एवं व्यवस्थाओं का, व्यक्तियों एवं व्यवस्थाओं तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2004 - 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114