Book Title: Tulsi Prajna 2004 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 35
________________ सुलझाने हेतु मत्स्यन्याय के स्थान पर विधि न्यायालयों में जाते हैं, जहाँ कि चोरी, बच्चों के अपहरण अथवा मांस के व्यापार जैसे अपराधों को न्यूनतम करने हेतु पुलिस की व्यवस्था भी पर्याप्त मात्रा में है। जहाँ कि लोगों के लिए विशेषत: बच्चे एवं औरतों के लिए किसी अपहरण अथवा बलात्कार से भयभीत हुए बिना घूमना आसान है, एक ऐसा समाज जिसमें कि सीमेन्ट और खाद के कुछ थैले हेतु घूस नहीं देनी होती, जिस समाज में लोग अपने दैनिक कार्य को किसी और इच्छा के बिना, ईमानदारीपूर्वक नियमित रूप से करते हैं, फिर भी इस समाज में यह सब कार्य इस विचार के साथ हो रहा है कि उनके किसी बड़े भाई द्वारा निरन्तर निगरानी की जाती है तो यह व्यवस्था शांतिपूर्ण नहीं है, क्योंकि इस व्यवस्था में भय की नियमनकारी भूमिका है। अन्य शब्दों में लोगों के मध्य अपराध और शारीरिक हिंसा का अभाव ही एक शांत समाज की रचना हेतु पर्याप्त शर्त नहीं है। इस परिवर्तन हेतु इस तरह के बड़े भाई पूर्ण अनुपस्थिति भी अनिवार्य है। हिंसा का सामान्यतः शारीरिक चोट से अर्थ लिया जाता है। यह चोट मात्रा में भिन्न हो सकती है। यह मामूली चोट से लेकर किसी व्यक्ति की दर्दनाक मौत भी हो सकती है। यह एक जेल की सजा भी हो सकती है, जहां कि व्यक्ति को एक सामान्य जीवन जीने से वंचित कर दिया जाता है, लेकिन हिंसा मनोवैज्ञानिक भी होती है जिसका प्रभाव शारीरिक हिंसा के समान ही दर्दनाक हो सकता है। स्पष्टतया ये भिन्न-भिन्न प्रकार की हिंसा मानवीय सम्बन्धों पर समान प्रभाव रखती है। एक व्यक्ति को गोली से मारना अथवा विद्युत् कुर्सी पर मारना अथवा भूख से तड़पाकर मारना व्यावहारिक दृष्टि से समान ही है। एक मामले में मृत्यु शीघ्रता से हो जाती है तो दूसरे में धीरे-धीरे। दोनों ही शारीरिक चोट है। आज भारत में तथा विश्व के अन्य देशों में आर्थिक प्रवंचन, जातीय व लैंगिक भेदभाव तथा जातिप्रथा, ये सभी समाज को हिंसक बनाये हुए हैं, क्योंकि ये सभी कृत्य मानव जीवन एवं मानव सम्बन्धों के लिए अहितकर है। शांति का ऐतिहासिक सन्दर्भ ___यद्यपि इतिहास में शान्ति के अध्ययन को अपेक्षित महत्त्व नहीं दिया गया है तथापि शांति का इतिहास में चिन्तनीय स्थान रहा है। सम्पूर्ण संसार के इतिहास में महत्त्वपूर्ण शांति आन्दोलन हुए हैं। अधिकांशतः इतिहासज्ञों, पुरातत्त्वविदों ने युद्ध एवं उनकी तकनीकों की कहानियों पर ही ध्यान दिया है । वस्तुत: इतिहास के अध्ययन-अध्यापन में शांति की, मानव की स्वाभाविक पिपासा को कोई गम्भीर तथा स्थायी स्थान नहीं दिया गया है। इतिहास में शांति का अध्ययन युद्ध, हिंसा, प्रतिस्पर्धा एवं विजयों के एक तरफा अध्ययन जिसने कि परम्परागत रूप से अधिक स्थान घेरा हुआ है। इस विषय पर समग्र दृष्टिकोण से अध्ययन का अभाव रहा है। 30 - तुलसी प्रज्ञा अंक 123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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