Book Title: Tulsi Prajna 2004 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 27
________________ प्रमुख मनोवेत्ता फ्रायड ने स्वप्न को मन में दबी हुई इच्छाओं का परिणाम माना है। दमन किए जाने पर कामनाएँ, इच्छाएँ अचेतन मन का मुख्य अंश बन जाती हैं और स्वप्न में चित्र दृश्यों के रूप में दिखलाई पड़ते हैं । युंग भी फ्रायड के कथन का समर्थन करते हुए कहते हैं - 'दमित मानसिक प्रवृत्तियाँ और जातिगत विशेषताएँ स्वप्न में प्रतीक रूप में अभिव्यक्त होती हैं।' स्वप्न के माध्यम से अचेतन मन के भण्डार में दमित इच्छाएँ रहती हैं। ये इच्छाएँ या कामनाएँ ही स्वप्न का आधार बनती हैं। समुद्र में तैरते बर्फ के पहाड़ (glaciar) का केवल दसवां भाग पानी के ऊपर रहता है और शेष नौ भाग पानी के अंदर छिपा रहता है। उसी तरह मनुष्य के मन का चेतन स्तर उसके मन का बहुत छोटा-सा अंश है। अचेतन मन का एक बड़ा भाग है, जिसकी क्रियाएँ हमसे छिपी रहकर चेतन स्तर की बहुत-सी क्रियाओं को संचालित करती हैं। मनोवेत्ता एडलर ने आत्म-गौरव (Self-assertion) की वृत्ति का संतुष्ट नहीं होना स्वप्न का कारण बताया है। लेकिन इसे स्वप्न की पूर्ण परिभाषा नहीं कहा जा सकता। स्वप्नों का कारण मूलप्रवृत्तियों का दमन या संघर्ष ही नहीं है, स्वप्न एक स्वाभाविक क्रिया भी है। यथार्थ में स्वप्न मनुष्य की अंतर्भावनाओं के दर्पण होते हैं। एक तरह से ये जीवन की समस्याओं, कल्पनाओं, इच्छाओं व ग्रन्थियों के छायावाहक भी हैं। कोई-कोई स्वप्न ऐसा आता है कि जीवन की सारी उलझनें समाप्त हो जाती हैं, समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं। अनुत्तरित प्रश्न उत्तरित हो जाते हैं, असमाहित मन समाहित हो जाता है। भारतीय मनोविज्ञान में स्वप्न के दो कारण स्वीकार किए गये हैं 1. शारीरिक कारण-देहस्थ विकार व देह-सम्बद्ध उत्तेजनाएँ स्वप्न के शारीरिक कारण हैं । चरक ने वात-दोष से आकाश में उड़ना, पृथ्वी के चारों ओर घूमना, भय से दौड़ना आदि स्वप्नों की उत्पत्ति बताई है। पित्त-दोष से अग्नि-प्रवेश आदि के स्वप्न तथा कफ-दोष से समुद्र पार करने, नदी में स्नान करने आदि से सम्बद्ध स्वप्नों की संभावनाएँ बताई है। ज्वर से आवेग काल एवं दर्द की अधिकता में प्रायः दुःस्वप्न देखे जाते हैं। देह सम्बद्ध बाह्य उत्तेजनाएँ भी स्वप्नों को प्रेरित करती हैं। जैसे कोई दुर्गन्धयुक्त प्रकोष्ठ में मलिन वस्त्रों को लेकर सोता है तो दुःस्वप्न दिखता है। सुन्दर, शांत, स्वच्छ वातावरण में सोता है तो शुभ स्वप्न देखता है । मुंह ढ़ककर सोने से मलिन वायु अन्तर में प्रविष्ट होकर मस्तिष्क में अप्रिय प्रभाव उत्पन्न करती है। जाग्रत काल में व्यक्ति उसके प्रतिकार की चेष्टा करता है परन्तु शयनकाल में प्रतिकार संभव न होने से वह प्रभाव स्वप्न को प्रेरित करता है। मधुर ध्वनि, सुरभि आदि अच्छे वातावरण से सुखप्रद स्वप्न उत्पन्न होते हैं। 2. मानसिक कारण- बाह्य अनुभवजन्य संस्कार व आन्तरिक इच्छाएँ स्वप्न के मानसिक कारण हैं। अन्य मानसिक क्रियाओं के समान स्वप्न भी एक मानसिक क्रया है, 22 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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