Book Title: Tulsi Prajna 2004 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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४०. अर्थशास्त्र (कौटिल्य १.२१.१८ )
४१. ज्ञाताधर्मकथासूत्र १.१.२४, असुं - ३, पृष्ठ १० विपाकसूत्र १.९.५०, पृष्ठ ७९५
४२. पाणिनि अष्टाध्यायी ३.२.१८२
४३. चरकसूत्र शा. अ. ९.५५
४४. चरकसूत्र अ. ५.१५-१७
४५. आचारचूला १.७२, ७३, अंसु-१
४६. सूत्रकृतांग १.४.३८
४७. तत्रैव १.४.४१
४८. तत्रैव २.१.५९, २.२.४३, २.४.२३
४९. स्थानांग सूत्र ४. ३११
५०. ज्ञाताधर्मकथा १.१.५६
५१. कुमारसंभव ७.२०
५२. ज्ञाताधर्मकथासूत्र १.१.३३, अंसु - ३, पृष्ठ १५
५३. अमरकोश २.६.४६-४७
५४. सूत्रकृतांग २.१.५२, २.२.३६, अंसु - १
५५. चरकसूत्र अ. ६.२५
५६. कुमारसंभव ७.१५
५७. आचारांग १.१.९.१.३
५८. सूत्रकृतांग २.२.५८, ६३, ७१, अंसु -१, पृष्ठ ३९०, ३९३, ३९७
५९. भगवतीसूत्र ६.१७३, ७.२५, १२.६, ११.३
६०. ज्ञाताधर्मकथासूत्र १. १७.३६.५, अंसु - ३, पृष्ठ ३४४
६१. तत्रैव १.१.२४, अंसु-३, पृष्ठ ११
६२. तत्रैव १.१३.१४, अंसु-३, पृष्ठ २३८
६३. उपासकदशा १.२९, अंसु - ३, पृष्ठ ४०२ ६४. तत्रैव १.६०, अंसु-३, पृष्ठ ४१३
६५. तत्रैव २.४०, अंसु-३, पृष्ठ ४३१
६६. औपपातिकसूत्र ६३, उवंगसुत्ताणि - १, पृष्ठ ३९ ६७. तत्रैव १६१, उवंगसुत्ताणि - १, पृष्ठ ६९
६८. तत्रैव १७०, अंसु-१, पृष्ठ ७२
६९. औपपातिकसूत्र १४६, उवंगसुत्ताणि - १, पृष्ठ ६५ ७०. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति १.९, उवंगसुत्ताणि - २, पृष्ठ ४०७ ७१. तत्रैव ३.२०, ३३, ५४, ६३
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तुलसी प्रज्ञा अंक 123
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