Book Title: Tulsi Prajna 2004 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 32
________________ शांति : अवधारणा एवं गांधीय दृष्टिकोण डॉ. राधा कुमारी मानव सभ्यता का सातत्य और विकास विश्व शांति पर निर्भर है। चाहे आज आणविक युद्ध रोकने की दिशा में प्रयास हों अथवा आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी को मानव कल्याण की बेहतरी की दिशा में मोड़ने का प्रयास, सबसे प्रभावी विकास का बिन्दु यह है कि लोगों में सामान्यतया युद्ध के खतरों और विशेषतया आणविक युद्ध के खतरों के प्रति चैतन्य विकसित हुआ है। परन्तु विडम्बना यह है कि स्थानीय संघर्षों व शांति के लिए उपस्थित अन्य खतरे जो कि वस्तुतः आज की विकास प्रक्रिया की उपज है, उनके प्रति जन चेतना जागृत करना अभी बाकी है। वर्तमान में शांति और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग का प्रश्न दो दृष्टिकोणों से मूल्यांकित किया जाता है। जहां एक दृष्टिकोण विभिन्न राष्ट्रों व राज्यों के मध्य शांति पूर्ण सहअस्तित्व का है, जो कि मुख्यतः युद्ध से बचाव पर अत्यधिक बल देता है, जिसमें कि वे सभी व्यूह रचना, प्रक्रियाएं व साधन शामिल हैं, जो कि तनावों को कम करते हैं, शस्त्र नियन्त्रण व अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के बातचीत से समाधान को प्रोत्साहित करते हैं । यह दृष्टिकोण विभिन्न क्षेत्रीय संघर्ष, सुरक्षा, समस्या, महाशक्तियों की प्रतिद्वन्द्विता, तकनीकी व संगठनात्मक आविष्कारों से सम्बन्धित विशाल अनुसंधान कार्य पर आधारित है ताकि शस्त्र नियन्त्रण वार्ताओं एवं शांति के समय में राष्ट्रों में परस्पर नागरिक व सैन्य सम्पर्कों को प्रोत्साहित कर सके। शांति व अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग का दूसरा दृष्टिकोण अधिक धरातल स्पर्शी है। यह दृष्टिकोण उपराष्ट्रीय इकाइयों, व्यक्तियों एवं व्यक्ति समूहों के मध्य होने वाले स्थानीय संघर्षों जो कि पूरे राष्ट्र को ही प्रभावित करते हैं व अन्ततः अन्तर्राष्ट्रीय शांति के लिए खतरा बन जाते हैं, पर ध्यान केन्द्रित करता है। वस्तुतः अधिकांश प्रमुख संघर्षों की जड़ छोटे पैमाने के तनाव होते हैं जो कि जातीय, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक सन्दर्भो में किसी एक अथवा अन्य समूह की वंचना के परिणाम होते हैं, तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2004 - - 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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