Book Title: Tulsi Prajna 2004 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 15
________________ १२. दण्डक - छड़ी लेना। १३. नालिका - एक प्रकार का अस्त्र विशेष। १४. खंड - तलवार। १५. छत्र १६. उपानह १७. उष्णीष १८. मणि (रत्नधारण) १९. बालव्यजन (पंख या चंवर धारण) २०. उदातानी दिग्दर्शनी कालिदास कृत मेघदूत के टीकाकार मल्लिनाथ ने चार प्रकार के शृंगार या प्रसाधनों का वर्णन किया है - कचधार्यं देहधार्यं परिधेयं विलेपनम्।१० . चतुर्धा भूषणं प्राहुः स्त्रीणामन्यच्च देशिकम्॥ १. अर्थात् कचधार्य - वेणी या केशरचना, केशों को संवारना। २. देहधर्म - शरीर का श्रृंगार करना। ३. परिधेय – वस्त्रों की सजावट। ४. विलेपन - अनेक प्रकार के अंगराग, उबटन, तेल, इत्र आदि लगाना, जिससे शारीरिक सौन्दर्य की वृद्धि हो सके। षोडश शृंगार ___ मनुष्य की अपेक्षा स्त्रियां प्रसाधन का अत्यधिक उपयोग करती हैं, इसलिए उनके प्रसाधन सामग्री का प्राचीन काल से ही आधिक्य रहा है। सौभाग्यवती अपने पति के सौभाग्य की कामना करती हुई हल्दी, केसर, सिन्दूर, कज्जल, आंगी (कञ्चुक), तांबूल, मांगलिक-आभूषण, बालों को संवारना, सिर, हाथ और कानों के आभूषण को धारण करती थी, बाद में इन्हीं वस्तुओं को शृगार नाम दे दिया गया तथा इनकी संख्या सोलह स्वीकृत किया गया। भगवान की षोडशोपचार पूजा की जाती है, संस्कारों की संख्या षोडश है, स्त्रियों में चन्द्रकला के स्थान सोलह मानते हैं, इसलिए शृंगारों की संख्या भी सोलह रखी गई होगी। वल्लभदास की सुभाषितावली में सोलह श्रृंगार के नाम इस प्रकार है -१. मज्जन, २. चीर, ३. हार, ४. तिलक, ५. अंजन, ६. कुण्डल, ७. नासामौक्तिक, ८. केशपाशरचना, 10 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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