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प्रकार निर्मल आकाश में चन्द्रमा चमकता है, उसी प्रकार अंजन-आश्च्योतन आदि से निर्मल आंखों में दृष्टि चमकती है। आयुर्वेद में अंजन के चार प्रकार बताए गए हैं - लेखन, रोपण, स्नेहन और प्रसादन। इनके मधुर को छोड़कर शेष पांच रसों - अम्ल, लवण, तिक्त, कटु, कषाय आदि से लेखन अंजन, तिक्त और कषाय को स्नेह के साथ मिलाकर रोपण अंजन बनाते हैं। रसशास्त्र में अंजन के पांच प्रकार हैं - स्रोताजन, सौवीराञ्जन, रसाञ्जन, नीलाञ्जन, पुष्पाञ्जन।
भारतीय साहित्य - संस्कृत, प्राकृत में अंजन का वर्णन प्राचीन काल से ही मिलता है। कालिदास आदि कवियों ने अपनी नायिकाओं के सौन्दर्य-संवर्द्धन के लिए 'अंजन' का प्रभूत प्रयोग किया है।
__ आगम साहित्य में अंजन का अनेक स्थलों पर वर्णन मिलता है। आचारचूला में अंजन शब्द का प्रयोग है - अंजण संसट्टेण ।५ सूत्रकृतांग में अनेक स्थलों पर अंजन एवं अंजन से सम्बद्ध सामग्री - अंजनशलाका आदि का वर्णन है। अंजन पात्र को अंजनी कहते हैं-अंजणि६, अंजणसलागं, अंजण । प्रस्तुत संदर्भ में महाव्रती भिक्षुओं के लिए अंजण प्रयोग का निषेध किया गया है। स्थानांग में पर्वत के नाम के लिए अंजण और मातंजण का उल्लेख है। ज्ञाताधर्मज्ञाता' में अंजनरत्न और अंजनपुलकरत्न का वर्णन है।
अंजन के समान ही काजल आंखों के लिए उपयोगी होता है। अंजन से अधिक कालिमा काजल में होती है। बच्चों की आंखों में प्रायः काजल ही लगाया जाता है। काजल प्राय: उंगली से ही लगाया जाता है। काजल को तेल से पारते हैं।
२. काजल - भारतीय साहित्य में प्राचीनकाल से ही काजल का प्रयोग देखा जाता है। संस्कृत साहित्य में नायिकाओं की शोभासंवर्द्धन के लिए काजल का प्रयोग किया जाता था। शौभाग्यवती स्त्रियां काजल को एक मांगलिक द्रव्य के रूप में प्रयोग करती हैं। कालिदास की पार्वती ने अपनी नील-कमल जैसी बड़ी-बड़ी और काली आंखों में मंगल चिह्न के रूप में काजल लगाया था।
तस्याः सुजातोत्पलपत्रकान्ते प्रसाधिकाभिनयने निरीक्ष्य। न चक्षुषो कान्तिविशेषबुद्धया कालाञ्जनं मंगलमित्युपात्तम्॥
आगम-साहित्य में अनेक स्थलों पर काजल का उल्लेख मिलता है - ज्ञाताधर्मकथा में जात्यंजन (श्रेष्ठ) के साथ-साथ काजल का वर्णन है।
जच्वंजण.....कज्जल.....२ यहां कज्जलमेघ के उपमान के रूप में प्रयुक्त है। तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2004 -
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